गटर का ढक्कन तभी उठाओ, जब गटर को साफ कर सकने की सामर्थ हो।
इसी तरह परनिन्दा/ दूसरों की बुराई तब करो जब बुराइयों को साफ करने की सामर्थ्य हो, अन्यथा यह भाव हिंसा होगी जो द्रव्य हिंसा से भी बुरी है।
क्योंकि भाव तो हर समय चलते रहते हैं।
हम अपने भाव तो सुधार नहीं पा रहे दूसरों के भाव कैसे सुधार सकते हैं ?

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (16 अगस्त 2024)

सर्विस करते समय दिल और दिमाग में कई बार संघर्ष होता है क्या करें ?

रेणु जैन-कुलपति

प्रशासनिक निर्णय लेते समय दिमाग से काम करें,
अपने मातहत लोगों के बारे में निर्णय लेते समय दिल से।

मुनि श्री प्रमाण सागर जी

स्व के तंत्र* में बंधना स्वतंत्रता है।
अगर अपने तंत्र में नहीं बंधेंगे तो स्वछंदता आ जायेगी।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

* नियम/ व्यवस्था/ अनुशासन
————————————————————————————————————
स्वतंत्रता को तारीख से बांधना भी एक अपेक्षा से दासता है।
अनादि से स्वतंत्रता तो हर जीव का स्वयं सिद्ध अधिकार है।

आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी

ज्ञेय से ज्ञान
बड़ा, आकाश आया
छोटी आँखों में।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

(दूसरी लाइन में (,) कॉमा के सही ज्ञान से अर्थ सही हो जाते हैं)

इस संसार का सबसे बड़ा जादूगर स्नेह(मोह) है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

(जादूगर जो होता नहीं उसे सच करके दिखाता है। मोह भी अहितकारी को हितकारी दिखाता है, हितकारी को अहितकारी)।

धर्म……….क्रियात्मक (मुख्यता से),
अध्यात्म… भावात्मक।
लेकिन धर्म की क्रियाओं को भावों के साथ करेंगे तभी भावात्मक अध्यात्म जीवन में आयेगा।

चिंतन

शरीर ….
कर्म शिल्पकार की रचना है।
मिट्टी की इमारत कब ढल जाए पता नहीं, फिर गुमान क्यों ?
ये चंद साँसों के पिल्लर पर खड़ा है।
जो न होती इसके ऊपर चाम की चादर पड़ी,
कुत्ते नौंचते रहते इसे हर घड़ी।

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (03 अगस्त 2024)

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

January 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031