लक्ष्मण-रेखा का उलंघन रावण हो या सीता या फिर ख़ुद राम ही क्यों ना हों, दंडित करेगा ही ।

टार्च तभी प्रयोग में लेते हैं जब जरूरत हो, बाकि समय बंद कर देते हैं ।
ज्ञान बाह्य वस्तुओं को जानने/देखने के लिये नहीं,
शांत रहने के लिये होता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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हित चाहने वाला पराया भी अपना है
और
अहित करने वाला अपना भी पराया है !

रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है
और
औषधि वन में पैदा होकर भी हमारा लाभ ही करती है ।
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(अनुपम चौधरी)

पूरी जिंदगी लगा दी चाबी खोजने में,
अंत में पता चला कि ताला तो क्या, दरवाजे भी नहीं हैं…
परमात्मा के घर में ।

भीतर शून्य ! बाहर शून्य !! शून्य चारौ ओर है !!!
“मैं” नहीं है मुझमें, फिर भी “मैं-मैं” का ही शोर है ।

इसी तू-तू—मैं-मैं के चक्कर में भगवान के घर की ओर नज़र उठाने की फुर्सत ही कहाँ मिली !

(मंजू)

गांठ पड़ते ही धागादि छोटे हो जाते हैं ।
मन में गांठ पड़ते ही मन भी छोटा (खोटा) हो जाता है ।
यदि गांठ पड़ ही गई है तो जल्द से जल्द खोल लो ताकि original स्थिति बन जाये ।

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