घर में रहकर आत्म-कल्याण कैसे करें ?

घर को “मेरा” ना मान कर, “बसेरा” मानना शुरू कर दो ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

स्त्री को …
अर्द्धांगिनी सम्बोधन तो कविओं की भाषा है ।
वे तो अष्टांगिनी हैं, तभी तो साष्टांगिनी हैं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

सूरजमुखी सूर्य की ओर मुँह करके प्रकाश से ऊर्जा लेते हैं ।
बादल छा जाने पर वह अपने मुँह दूसरे सूरजमुखी फूलों की ओर करके आपस में ऊर्जादेते/लेते हैं ।
क्या हम लोग संकट के समयों में ऐसा नहीं कर सकते ?

डॉ. एस. एम. जैन

भूतकाल के विकल्पों तथा भविष्य के भय से विचलित ना होना ।
जैसे छोटे छोटे बच्चे और साधु अनुकूल/प्रतिकूल परिस्थतिओं में समता रखते हैं ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

त्याग बाह्य वस्तु का,
तप अंतरंग इच्छाओं का (इच्छा निरोध: तप:)

मुनि श्री सुधासागर जी

अपेक्षा निरोधः तपः

आचार्य श्री विद्या सागर जी

इस युग में पाप ज्यादा या पुण्य ?
ज्यादा कैसे ??

उत्तर…
अंधे ज्यादा या दोनों आँखों से देखने वाले ?
अपाहिज कितने ? स्वस्थ कितने ?

मुनि श्री सुधासागर जी

(यहाँ आकर हम पुण्य से ज़्यादा पाप करते हैं)

बड़े नोट को खुलवाते नहीं, छुपाकर रखते हैं ।
ऐसे ही पुण्य – छोटे मोटे कामों के लिये खर्च मत करो,
उसका प्रदर्शन भी मत करो,                           
लक्ष्मी का प्रदर्शन नहीं/सरस्वती का प्रदर्शन सही है ।

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