राजनीति नीति पर आधारित, सत्य ना भी हो।
धर्म सत्य पर ही आधारित।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

भेंट उनको जो लेते हैं जैसे राजा, मेहमान।
दान समर्पित उनको जो लेते नहीं हैं जैसे साधु,
दान जैसे आहार-दान साधु को।
समर्पण जैसे नारियल साधु को।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

“If you think you are too small to make a difference, you haven’t spent the night with a mosquito.”

(J. L. Jain)

Small size does not come in the way of doing good either.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥

(कमलकांत)

विषकन्याओं के प्रभाव से बचाने के लिये राजाओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष दिया जाता था, चाणक्य भी चंद्रगुप्त को विष दिलवाते थे।
हमको भी बड़े-बड़े दुखों को सहने के लिये छोटे-छोटे दुखों को सहने का अभ्यास करना चाहिये।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

मुनिश्री के अभिप्राय को वैक्सीनेशन के उदाहरण से भी अच्छी तरह से स्पष्ट कर सकते हैं।

डाॅ.सौरभ – विदिशा/ कमल कांत

प्राय: हम उन चीजों का विवरण बहुत विस्तार में देते हैं जिनमें सामने वाले को कोई रुचि नहीं होती/ वह जानना भी नहीं चाहता जैसे मेरे रिश्ते में कोई घटना हो तो सुनने वाले को Something-Something कह, बात को Cut Short करके अपनी और दूसरों की Energy बचा क्यों नहीं सकते !

चिंतन

वचन 2 प्रकार –
1. शिष्ट प्रयोग
2. दुष्ट प्रयोग
कुल 12 प्रकार के, इनमें 11 दुष्ट प्रयोग, जैसे अव्याख्यान (टोकना), कलह।
शिष्ट प्रयोग – सम्यग्दर्शन वाक्।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीव काण्ड: गाथा – 366)

तो समझदारी मौन रहने में ही होगी ना।

चिंतन

संसार में प्राप्त को पर्याप्त मानने को कहा, तो परमार्थ में ?
दोनों में एक ही सिद्धांत… अपनी-अपनी क्षमतानुसार, आकुलता रहित, पूर्ण पुरुषार्थ।
दोनों ही क्षेत्र में नकल/ प्रतिस्पर्धा नहीं, हाँ ! किसी को आदर्श बनाने में बुराई नहीं।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

गुफा ने सूर्य को दुखड़ा रोया… हर जगह/ हर समय अंधकार ही अंधकार क्यों है ?
सूर्य देखने आया पर गुफा का हर कोना/ हर समय प्रकाशित दिख रहा था।
हम अपने-अपने दुःख मन में संजोये रहते हैं पर कुछ लोग अपने स्वर्ग अपने कंधों पर लेकर चलते हैं, जहाँ-जहाँ भी वे जाते हैं स्वर्ग बन जाता है।

(डॉ.सुधीर- सूरत)

(Some people bring Happiness wherever they go,
Others whenever they go)

दया/ क्षमा धर्म कैसे ?
धर्म की अंतिम परिभाषा –> वस्तु का स्वभाव ही धर्म है।
दया/ क्षमा आत्मा का स्वभाव है, इस अपेक्षा से दया/ क्षमा धर्म हुआ।

चिंतन

धम्मो वत्थुसहावो,
खमादिभावो दसविहो धम्मो।
रयणत्तयो च धम्मो,
जीवाणु रक्खणो धम्मो।।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा
धर्म क्षमा आदि दशविध ( दस लक्षण वाला) है।
यह दूसरी परिभाषा हुई।

कमल कांत

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