मशीन जब खराब/ पुरानी हो जाती है तो आवाज करने लगती है।

मुनि श्री सुप्रभसागर जी

(हम यदि हित, मित, प्रिय नहीं बोल रहे हैं तो हमारी मशीन क्या कहलायेगी? )

1. अहम् शांत होता है, झुकना सीखते हैं।
2. दर्शन से/ उनकी मुस्कान से दुःख कम होते हैं, हम लेनदेन करके दुःख कम करते हैं, देव-दर्शन बिना लेनदेन के सर्वस्व देते हैं।
3. रागद्वेष कम होता है (वीतरागता के दर्शन से)।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

दुर्जनों से ही नहीं उनकी छाया से भी दूर रहना चाहिये।
Safe-distance बना कर रखें।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

ज़हर को जानो, धारण मत करो !
ऐसे ही अन्य अवांछनीय चीज़ों के लिये समझें।
(ज़हर से तो एक झटके में मृत्यु होती है। अवांछनीय चीज़ों से धीरे-धीरे, Slow Poison हैं)

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

संसार कहता है धन कमाओ, परमार्थ कहता है जीवन को धन्य करो; दोनों में सामंजस्य कैसे बैठायें ?
बाएं हाथ से धन कमाओ, दाएं हाथ से धन लगाओ (परमार्थ में)।
धन भी आ जायेगा तथा जीवन धन्य भी हो जायेगा। बांध बना कर पानी रोको पर रोके ही मत रहने दो।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

गणेश विसर्जन के समय नाव पलट गयी। भक्तों ने गणेश जी से बचाने के लिये प्रार्थना की।
गणेश जी प्रकट तो हुए पर नृत्य करने लगे।
प्रभु! आप ये क्या कर रहे हैं ?
वही जो तू मुझे डुबाने के बाद करता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

चिंतन ध्यान से पहले की प्रक्रिया।
चिंतन में वस्तु के इर्द गिर्द घूमते हैं, ध्यान में वस्तु के केंद्र पर केन्द्रित; दोनों एक साथ चलते हैं।
विशुद्धता(गुणस्थान) की अपेक्षा → प्रारम्भ तथा अंत समान गुणस्थान पर।

शंका-समाधान- 3 (मुनि श्री प्रणम्यसागर जी)

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