ध्यान
ध्यान दो रूप –
1. चिंतन रूप → गृहस्थों के लिये, गुणवानों के गुणों का।
2. एकाग्रता रूप → साधुओं के लिये।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
ध्यान दो रूप –
1. चिंतन रूप → गृहस्थों के लिये, गुणवानों के गुणों का।
2. एकाग्रता रूप → साधुओं के लिये।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने ध्यान की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः श्रावकों को चिंतन रुप होना परम आवश्यक है ताकि एकाग्रता रुप तक पहुचने में समर्थ हो सकें ।