उपदेश अपने देश (आत्मा) में आने के लिये होता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
मशीन जब खराब/ पुरानी हो जाती है तो आवाज करने लगती है।
मुनि श्री सुप्रभसागर जी
(हम यदि हित, मित, प्रिय नहीं बोल रहे हैं तो हमारी मशीन क्या कहलायेगी? )
1. अहम् शांत होता है, झुकना सीखते हैं।
2. दर्शन से/ उनकी मुस्कान से दुःख कम होते हैं, हम लेनदेन करके दुःख कम करते हैं, देव-दर्शन बिना लेनदेन के सर्वस्व देते हैं।
3. रागद्वेष कम होता है (वीतरागता के दर्शन से)।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(रेनू – नया बाजार मंदिर)
(डाॅ.एस.एम.जैन)
चारों कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) में से सिर्फ मान (गर्व) का “मान” किया जाता है, कैसी विडम्बना है ?
कमल कांत
दुर्जनों से ही नहीं उनकी छाया से भी दूर रहना चाहिये।
Safe-distance बना कर रखें।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज़हर को जानो, धारण मत करो !
ऐसे ही अन्य अवांछनीय चीज़ों के लिये समझें।
(ज़हर से तो एक झटके में मृत्यु होती है। अवांछनीय चीज़ों से धीरे-धीरे, Slow Poison हैं)
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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Download File: https://maitreesandesh.com/wp-content/uploads/2024/03/WhatsApp-Video-2024-02-27-at-19.20.40.mp4?_=1(रेनू – नया बाजार मंदिर)
संसार कहता है धन कमाओ, परमार्थ कहता है जीवन को धन्य करो; दोनों में सामंजस्य कैसे बैठायें ?
बाएं हाथ से धन कमाओ, दाएं हाथ से धन लगाओ (परमार्थ में)।
धन भी आ जायेगा तथा जीवन धन्य भी हो जायेगा। बांध बना कर पानी रोको पर रोके ही मत रहने दो।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
गणेश विसर्जन के समय नाव पलट गयी। भक्तों ने गणेश जी से बचाने के लिये प्रार्थना की।
गणेश जी प्रकट तो हुए पर नृत्य करने लगे।
प्रभु! आप ये क्या कर रहे हैं ?
वही जो तू मुझे डुबाने के बाद करता है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ध्यान दो रूप –
1. चिंतन रूप → गृहस्थों के लिये, गुणवानों के गुणों का।
2. एकाग्रता रूप → साधुओं के लिये।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
1. दुष्टता – द्वेष रूप/ गंदा पानी
2. इष्टता – राग रूप/ सादा पानी
3. माध्यस्थता – वीतरागता रूप/ नमी रहित
चिंतन
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