इतिहास कहता है – भूत में सुख था,
विज्ञान का कहना है – भविष्य में सुख होगा,
धर्म का कहना – आज में सुख है।
आज का सुख, भूत और भविष्य को भी सुखी कर देगा।

श्रीमती सुनीति(चिंतन)

– “आज” में “आ” सुख को आमंत्रण देता है,
“ज” भूत को इंगित करता है।

जो पत्थर छैनी/हथौडों की चोट से टूट जाते हैं,
उन्हें फर्श पर बिछा दिया जाता है और पैरों से कुचल जाते हैं।
जो सह लेते हैं ,वे भगवान(मूर्ति) बन जाते हैं/पूजे जाते हैं।

ब्र. चेतन भैया (अब मुनि श्री प्रणीतसागर जी) दीक्षा लेने से पहले बता रहे थे –
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज कहते हैं –
“पंचम काल में मुनि श्री क्षमासागर जी का णमोकार भी सर्वांग से निकलता हुआ लगता है “

व्रत की गाड़ी एक बार खरीदी जाती है पर पैट्रोल डालते रहना होगा/Maintenance लगातार करनी पड़ेगी,
गुरुवचन/संगति आवश्यक रहेगी ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

अपने बच्चों को उत्तम कुल/लौकिक पढ़ाई/वैभव रूपी वाण तो दिये हैं पर संस्कार रूपी धनुष नहीं दिया।
वे संसार का युद्ध कैसे जीत पायेंगे ?

मुनि श्री कुंथुसागर जी

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