पं. श्री दरबारीलाल जी कोठिया न्यायाचार्य के समाधिमरण के दौरान उन्होंने आचार्य श्री को बताया की शरीर बहुत तंग कर रहा है ।
आचार्य श्री – आप तो न्यायाचार्य हैं जो शरीर ने आपके साथ किया, वही आप उसके साथ कीजिये ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

जूना होने पर कपड़ा किसी और के काम का नहीं रहता ,
पर जो किसी के भी काम का नहीं रह जाता, वह अपने काम का हो जाता है ।

श्री लालमणी भाई

(जो दूसरों की कद्र करना जानते हैं वे वृद्धावस्था के अनुभवों को जूना बना कर अपने मैल साफ कर लेते हैं )

दु:खी होकर/अज्ञानता से शरीर छोड़ने के भाव से पापबंध,
मोक्ष सुख के लिये आनंद और ज्ञान सहित समाधिमरण करने से पुण्य/मोक्ष ।
क्रिया दोनों में एक ही है ।

चिंतन

तीनों में “मा” है ।
पर माँ 18 साल तक, महात्मा 50 तक ,परमात्मा अंत तक Guide करते हैं ।
(जो मंदबुद्धि होते हैं वे बुढ़ापे तक माँ का पल्लू पकड़े रहते हैं )

(पं. सुगनचंद्र जैन – शिवपुरी)

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728