ना, मत बोलो,
“हाँ” की कूबत देखो,
दंग रह जा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
भगवान से बल मांगते हैं, क्या वे बल देते हैं ?
कमज़ोर आदमी का स्मरण/ संगति से कमज़ोर होने लगते हैं। हनुमान भक्त युद्ध में “जय बजरंग बली” के नारे से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। तो सर्वशक्तिमान के नाम से शक्ति नहीं महसूस होगी !
चिंतन
अच्छाई के माध्यम से ही सच्चाई का दर्शन होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
चीते और कुत्ते की दौड़ में, कुत्ता जी-जान से दौड़ा पर चीता दौड़ा ही नहीं।
कारण ?
चीते को अपनी Superiority सिद्ध करने की ज़रूरत ही नहीं थी।
(हम क्या सिद्ध करने में अपने जीवन को दांव पर लगा रहे हैं ?
कि हम मनुष्य हैं ?? सर्वश्रेष्ठ Category के हैं ??)
(डॉ. पी.एन.जैन)
कर्म, धर्म की ओर ले जाता है,
धर्म, कर्म को अनुशासित करता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
समता और ममता सौतन है।
एक को ज्यादा महत्त्व दिया तो दूसरी रुठ जाती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अमीर के जीवन में जो महत्व “चैन” से “सोने” का है,
गरीब के जीवन में वही महत्व “सोने” की “चैन” का है।
(सुरेश)
दया…….दु:ख न हो जाय/ दु:ख न देना।
करुणा… दु:ख में से निकालना।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
क्या देवदर्शन टी.वी. पर करने से काम चलेगा ?
क्या पिता के जीवित रहते, उनके दर्शन फोटो पर करने से काम चलेगा?
साक्षात दर्शन के बराबर Energy मिलेगी क्या ??”
क्या यह अपशगुन नहीं माना जायेगा ???
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी)
जैन दर्शन का कर्म-सिद्धांत पूर्ण स्वतन्त्र है।
इसमें भगवान तक पर Dependency/ उनका Interference Allowed नहीं।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कर्तव्य – सामने वाले को एक बार समझाना,
कर्तृत्व – बार-बार कहना/ पीछे पड़े रहना।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
दया/ सेवा नींव है।
Ritual इमारत, Spirituality शिखर।
बिना नींव के इमारत बनेगी नहीं, सिर्फ नींव इमारत कहलायेगी नहीं ।
बिना शिखर के धार्मिक इमारत नहीं कहलायेगी।
चिंतन
सल्लेखना के आखिरी 4 साल में शरीर को कष्ट सहिष्णु बनाना होता है, इससे सहन शक्ति बढ़ती है/ शरीर आरामतलब नहीं बनता है।
फिर रसों (मीठा/ नमकीनादि) को छोड़ते हैं। तब छाछ, तत्पश्चात जल, अंत में उसका भी त्याग कर देते हैं।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी)
पहले साधु बनने का उपदेश क्यों दिया जाता है ?
पहले मंहगा/ कीमती माल ग्राहक को दिखाया जाता है, यदि चल गया तो बड़ा फायदा (दोनों पक्षों को)।
न चल पाये तो सस्ता माल दिखाया जाता है (छोटे-छोटे नियम)।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी)
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