रावण पूरा जीवन चक्र हासिल करने में लगा रहा पर उसके जीवन का अंत उसी चक्र से हुआ ।
हम सब भी संसार के चक्कर में चक्र की तरह घनचक्कर हो रहे हैं ।
हमारा अंत भी, यही हमारा ही चक्कर करेगा ।

मुनि श्री विश्रुतसागर जी

बहुत सुन्दर शब्द जो एक मंदिर के दरवाज़े पर लिखे थे ।

अगर तुम अन्याय, अत्याचार और पाप करते करते थक गए हो तो अंदर आ जाओ ।
… क्यूंकि …
भगवान मेहरबानियाँ करते करते अभी नहीं थके हैं ।

परोक्ष में निंदा से उसका (जिसकी निंदा की जा रही है) बुरा नहीं, निंदा करने वाले का अवश्य,
प्रत्यक्ष में निंदा से उसका भला, अपना भी ।

मुनि श्री कुंथुसागर जी

रावण ने पूरी ज़िंदगी भोग भोगे, राम ने वनवास ।
रावण को हर साल रामलीला मैदान में जलाया जाता है, राम को मोक्ष सुख हमेशा हमेशा के लिये ।

मुनि श्री सुधासागर जी

मोबाईल में दो कैमरे, एक आगे का फोटो खींचता है, दूसरा पीछे का ।
पर एक समय में एक और एक का ही ।
संसार की ओर मुख करोगे तो मोक्षमार्ग छूट जायेगा/दिखेगा ही नहीं ।

चिंतन

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