ईश्वर ने हमारे शरीर की रचना कुछ इस प्रकार की है,
कि ना तो हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं और ना ही स्वयं को लात मार सकते हैं ।
इसके लिए हमारे जीवन में मित्र होने जरुरी हैं ।

(श्रीमति दिव्या जैन-लंदन)

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली,
कुछ यादें मेरे संग ….. पांव पांव चलीं !
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ,
वो ज़िंदगी ही क्या… जो छाँव छाँव चली !!

(श्री तुषारभाई- मुम्बई)

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