आज के युवाओं का सोच – Enjoy.
अध्यात्म का – In-Joy.
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
एक बार जब कोई धोखा देता है तो हमें गुस्सा आता है।
किन्तु मोह हमें जीवन-भर धोखा देता रहा उस पर हमें प्रेम क्यों आता है !!
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
धन का दान किस श्रेणी (आहार, औषधि, शास्त्र, अभय/ आवास) में
आयेगा ?
धन जिस श्रेणी के लिये उपयोग किया जायेगा, उसी श्रेणी में आयेगा।
सूरज उनको भी प्रकाशित करता है जो उसे सम्मान नहीं देते। बस प्रकाश को ग्रहण करने का पुण्य होना चाहिये (आँखों में देखने की क्षमता) ।
साधु उस स्थान/ समाज में भी जाते हैं जहाँ उनको मानने वाले नहीं होते हैं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
मोबाइल में ढेरों सूचनायें जमा होने पर वह काम करना बंद कर देता है, तब नया लेना बेहतर है।
हमारे मन में लोगों के प्रति कटुता अत्यधिक होने पर ऐसा मन/ शरीर बदलना बेहतर न होगा !!
चिंतन
घमंड की अनुपस्थिति का नाम विनम्रता है।
मुनि श्री विनम्रसागर जी
जो तलाशता है उसे ख़ामी नज़र आती है।
जो तराशता है उसे खूबी नज़र आती है।।
(सुरेश)
आयोजनों से यदि मन की विशुद्धि बढ़ानी है तो आयोजन करने का प्रयोजन ध्यान में रखना होगा।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कुछ धर्मों ने प्रचार/ फैलाने के लिये हिंसा तथा प्रलोभन का सहारा लिया। क्योंकि उनके पहले प्रचारक से पहले वह धर्म था ही नहीं सो मानने वाले भी नहीं थे।
जबकि पूर्व में वह धर्म पहले से चले आ रहे थे जैसे आदिनाथ/ महावीर भगवान। उन्हें प्रचारादि की ज़रूरत ही नहीं थी।
आवास दान करने से अच्छा आवास मिलता है।
यह दान चार श्रेणियों के लिये किया जाता है –
1. मंदिर – भगवान के लिये
2. संतशाला – संतो के लिये
3. धर्मशाला – साधर्मी के लिये
4. गऊशाला- जानवरों के लिये
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
जिस दिन आपको यह अनुभव हो जायेगा कि… “सब दौड़ व्यर्थ है”।
उस दिन आप उसी जगह पर खड़े रह जाते हैं, जहाँ परमात्मा है।
(धर्मेन्द्र)
धर्म करने से कष्ट बढ़ते नहीं, कष्ट निकलते हैं।
जैसे डाक्टर फोड़ा ठीक करने के लिये फोड़े को दबाकर उसकी गंदगी निकालता है।
उस समय कष्ट बढ़ा दिखता है पर बाद में, सुकून/ आराम।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अनर्थ परंपरा की संभावना निम्न स्थिति में होती है →
गर्भ से ऐश्वर्य, नया-नया यौवन, अति सुंदरता, अमानुषिक शक्ति।
(ऐसी स्थिति में सावधान रहें)
विनोद शास्त्री
बुराई करने वाला बुरा नहीं होता है,
(वो तो बस) बुराई करने से बुरा हो जाता(सिर्फ बुराई करते समय)।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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