योग यानि जोड़, धर्म का पर्यायवाची है,
धर्म संश्लेषणात्मक है,
विज्ञान विश्लेषणात्मक (तोड़ता) है ।

ब्र. नीलेश भैया

एक ही शरीर में तीन अलग अलग आदतें हैं –
सबसे ज्यादा सर्दी लगती है छाती को,
उससे कम हाथ पैरों को,
और सबसे कम मुँह को ।

जैसी आदत ड़ालो वैसी पड़ जाती है ।

चिंतन

जो बच्चे कक्षा में बार बार फेल होते हैं, उन्हें उसी कक्षा में बार बार रहना परता है ।
यदि हम कर्मोदय में बार बार फेल हो रहे हैं तो मान लें – हमारा संसार में बार बार आना निश्चित है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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