युद्ध में राम जाते थे तो भावना जीतने की रहती थी, हराने की नहीं ।
इसीलिये वे कर्मों को जीतकर भगवान बन गये ।
साधारण योद्धा, हराने के लिये युद्ध करता है कभी हारता है, कभी जीतता है पर मोक्ष नहीं जाता ।

चिंतन

व्यवसाय में पहले पैसा लगाते हो, मेहनत करते हो, तब फायदा होता है ।
बैंक में पैसा जमा करते हो, तब व्याज मिलता है ।
बिना पुरुषार्थ किये, गुरू/भगवान की कृपा की अपेक्षा क्यों करते हो ?

चिंतन

थोड़े से, क्षणिक सांसारिक सुख के बदले में अनंत/शास्वत आत्मिक सुख को छोड़े/भूले हुये हैं ।
ऐसा ही है जैसे मंज़िल के रास्ते में थोड़ी सी पेड़ की छांव के लिये मंज़िल पहुँचने का इरादा भूल गये हैं ।
चिल्लर के चक्कर में खजाना छोड़ रहे हैं ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है ।
जैसी संगति वैसे बनोगे ।
मंदिर जाओगे भगवान जैसे, गुरूओं की सेवा में रहोगे त्याग/संयम के भाव बनेंगे ।

मुनि श्री विश्रुतसागर जी

शुद्ध घी तो घर का ही होता है, निकालना भी आता है, पर प्रमाद और समयाभाव से बाज़ार से लेते हैं ।
गुरू महनत करके ज्ञान रूपी घी हमें देते हैं ।
पर ध्यान रहे ऐसे गुरू से मत लेना जो नकली देता हो या खुद प्रमादी हो ।

चिंतन

हमें समतल होना होगा (कमजोरियों के गड़्ड़े भरने होंगे, घमंड़ के टीले ढ़हाने होंगे) तभी समता भाव आयेगा – प्रिय/अप्रिय से, सुख दु:ख में स्थिरता रहेगी ।

ब्र. नीलेश भैया

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