यदि मंदिर सिर्फ मंदिर जाने के लिये जा रहे हो तो याद रखना उस मंदिर के चूहे आदि बनोगे ।
यदि अपने अंदर जाने के लिये जा रहे हो तो मंदिर के अंदर बैठे भगवान बनोगे ।

आचार्य श्री विशुद्धसागर जी

आँखों में कचरा गिरते समय, पलकें कचरे से आँखों को बचाने का पूरा प्रयास करतीं हैं, चाहे कचरा गिरे या आँखें बचें ।
दांतों में कुछ फंसने पर जीभ उसे निकालने का लगातार प्रयास करती रहती है चाहे डॉक्टर भी तिनका निकालने में लगा हो ।

श्री लालमणी भाई

अर्थ* से अर्थ** के आकर्षण को अर्थहीन करें ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

* शास्त्र/गुरुवाणी के अर्थ
** धन दौलत

वेग में तो पढ़े/बिना पढ़े सब बराबर हो जाते हैं ।
विकलता के साथ तो धार्मिक क्रियायें/वैराग्य भी सही नहीं है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

मोह फोड़ा है,
ज्ञान उसे ढ़कने वाला खुरंट,
यदि ज्ञान रूपी खुरंट हटाते रहे तो घाव नासूर बन जायेगा ।
मोह की खुजलाहट तो होगी पर घाव को ढ़के ही रखना, जल्दी ठीक हो जायेगा ।

चिंतन

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