सारंगी जीवन है,
सारंगी के ज्ञान रूपी तारों को , साधना रूपी ऊँगुलियों से बजाया तो मधुर संगीत निकलेगा,
वरना ये सारंगी कवाड़ा हो जायेगी ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

एक सज्जन बनारस पहुँचे।
स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आया,
‘‘मामाजी! मामाजी!’’ — लड़के ने लपक कर चरण छूए।
वे पहचाने नहीं।
बोले — ‘‘तुम कौन?’’
‘‘मैं मुन्ना। आप पहचाने नहीं मुझे?’’
‘‘मुन्ना?’’ वे सोचने लगे।
‘‘हाँ, मुन्ना । भूल गये आप मामाजी!
खैर, कोई बात नहीं, इतने साल भी तो हो गये।
मैं आजकल यहीं हूँ।’’
‘‘अच्छा।’’
‘‘हां।’’
मामाजी अपने भानजे के साथ बनारस घूमने लगे।
चलो, कोई साथ तो मिला। कभी इस मंदिर, कभी उस मंदिर।
फिर पहुँचे गंगाघाट, बोले कि “सोच रहा हूँ, नहा लूँ!”
‘‘जरूर नहाइए मामाजी!
बनारस आये हैं और नहाएंगे नहीं, यह कैसे हो सकता है?’’
मामाजी ने गंगा में डुबकी लगाई।
हर-हर गंगे!
बाहर निकले तो सामान गायब, कपड़े गायब!
लड़का… मुन्ना भी गायब!
‘‘मुन्ना… ए मुन्ना!’’
मगर मुन्ना वहां हो तो मिले।
वे तौलिया लपेट कर खड़े हैं।
‘‘क्यों भाई साहब, आपने मुन्ना को देखा है?’’
‘‘कौन मुन्ना?’’
‘‘वही जिसके हम मामा हैं।’’
लोग बोले, ‘‘मैं समझा नहीं।’’
‘‘अरे, हम जिसके मामा हैं वो मुन्ना।’’
वे तौलिया लपेटे यहां से वहां दौड़ते रहे।
मुन्ना नहीं मिला।
ठीक उसी प्रकार…
भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है !
चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है ।
“मुझे नहीं पहचाना!
मैं चुनाव का उम्मीदवार। होने वाला एम.पी.।
मुझे नहीं पहचाना…?”
आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं।
बाहर निकलने पर आप देखते हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था,
आपका वोट लेकर गायब हो गया।
वोटों की पूरी पेटी लेकर भाग गया।
समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं।
सबसे पूछ रहे हैं — “क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया?
अरे वही, जिसके हम वोटर हैं।
वही, जिसके हम मामा हैं।”
पांच साल इसी तरह तौलिया लपेटे, घाट पर खड़े बीत जाते हैं।
आगामी चुनावी स्टेशन पर भांजे के इंतजार में….

वैराग्य आने में चार प्रतिबंध होते हैं ।

  • लोक – लोग क्या कहेंगे,
  • स्वजन – लेने नहीं देते,
  • शरीर – कमजोर है,
  • संकल्प/विकल्प – संयास लिया तो, ऐसा होगा, तो क्या होगा ।

श्री कल्पेश भाई

सचिन तेंदुलकर के 200 वें अंतिम टेस्ट मैच के समय एक संस्मरण सुनाया गया –
पाकिस्तान के साथ एक मैच में उनके बैट्समैन जावेद मियाँदाद ने बॉलर से पूछा कि तेरा रूम नं. क्या है ?
उसने ज़बाब नहीं दिया ।
हर बॉल के बाद मियाँदाद वही प्रश्न करता था और बॉलर कोई ज़बाब नहीं देता था ।
मैच पूरा होने के बाद बॉलर ने पूछा कि मेरा रूम नं. क्यों पूछ रहे थे ?
मियाँदाद ने कहा – मुझे ऐसा सिक्स मारना था जो तेरे रूम के काँच तोड़ देता ।

जाहिर है बॉलर उलझा नहीं, बैट्समैन सिक्स मार पाया नहीं और इंड़िया जीत गया ।
तेंदुलकर किसी से उलझते नहीं/रियेक्ट नहीं करते हैं, बस अपनी मंज़िल की तरफ निरंतर बढ़ते रहते हैं ।

पहाड़ों पर पानी दिखता नहीं है, पर सब मीठे पानी की नदियाँ वहीं से निकलती हैं ।
समुद्र में पानी ही पानी है पर प्यास बुझाने के लिये एक बूँद पानी भी नहीं है (सांसारिक सुख) ।
इसी प्रकार धर्म भी दिखता नहीं है पर प्यास बुझाता है, शीतलता देता है ।

मुनि श्री उत्तमसागर जी

भगवान की मूर्तियों के आसपास देवी देवताओं की सुंदर सुंदर मूर्तियाँ/सजावट होती है ।
यदि उनमें अटक गये तो मुख्य भगवान की छवि से दूर हो जाओगे/भटक जाओगे ।

चिंतन

भगवान की पूजा से फायदे वैसे ही हैं जैसे नदी में नहाना ।
मैल (पाप) दूर होता है, (जितनी तल्लीनता से करोगे, उतना ज्यादा मैल निकलेगा )।
शीतलता (पुण्य) मिलती है,
पवित्रता (कर्मनिर्जरा/झरते हैं) आती है ।

श्री सुभाष भाई

कर्म उदय आने पर हमारी सोच को प्रभावित कर देता है ।
पुण्यकर्म का उदय आने पर सोच अच्छी हो जाती है और पापोदय आने पर सोच खराब हो जाती है ।

पं. रतनलाल जी बैनाड़ा

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