किसी व्यक्ति ने सांई से पूछा –
बाबा आप बड़े हैं, फिर भी नीचे क्यों बैठते हो ?

नीचे बैठने वाला कभी गिरता नहीं है ।

इंसान ने वक़्त से पूछा – मैं हार क्यों जाता हूँ ?
वक़्त ने कहा –
“धूप हो या छाँव हो, काली रात हो या बरसात हो ।
चाहे कितने भी बुरे हालात हों,
मैं चलता रहता हूँ, इसीलिये मैं जीत जाता हूँ ।
तू भी मेरे साथ चल, कभी नहीं हारेगा ।”

ज़िंदगी पल-पल ढ़लती है,
जैसे रेत मिट्टी से फिसलती है ।
शिकवा कितने भी हों फिर भी हर पल हंसते रहना,
क्योंकि ये ज़िंदगी जैसी भी है बस एक ही बार मिलती है ।

हमारा तो बस वह है जो हम किसी को देते हैं, जैसे दान/परोपकार ।
किसी से छीना हुआ हमारा कैसे हो सकता है ?

गुरू मुनि श्री क्षमासागर जी

पर्वराज हमें उजाला देकर कल चले गये ।
अब हमारा कर्तव्य है कि उस दीपक में लगातार तेल ड़ालते रहें, लौ/बत्ती को संभालते रहें ताकि वो धर्म का प्रकाश हमारे जीवन में बुझ नहीं पाये ।
ये तभी संभव होगा जब हमारे अंदर वात्सल्य आयेगा, हालाँकि ये भी तय है कि वात्सल्य के बिना जीवन चलता नहीं है,
वात्सल्य ही एक ऐसी चीज है जो हमारे जीवन को हिंसा रहित कर सकती है ।

आचार्य श्री कहते हैं – प्रेम की स्याही और आचरण की कलम से ही जीवन के काव्य का निर्माण होता है ।
आचरण की कलम बिना प्रेम की स्याही के कागज / जीवनों को फाड़ देगी , लिखा कुछ नहीं जायेगा ।
वात्सल्य की बातें तो हम बहुत करते हैं, फिर बात बात में शल्य क्यों कर लेते हैं, कांटें जैसी चुभन क्यों पैदा कर लेते हैं ?
कलम फूल हों, पर कदम (आचरण) शूल ना हों ।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

  • जनसंख्या की वृद्धि रोकने के लिये परिवार नियोजन की जरूरत नहीं, पाप के नियोजन की  जरूरत है ।
  • वासना ही है जो उपासना और आत्मा की साधना में बाधक है ।
  • ब्रम्हचर्य की रक्षा कैसे की जाये ?
    स्वाध्याय, ध्यान, संयमीयों का सत्संग, शील पालन में सहायक होता है ।
    नशा, अपशब्द, शरीर का श्रंगार ये बाधक होते हैं ।
  • ब्रम्हचर्य कवच है, ये किसी तरह के भी दोष नहीं आने देता ।
    (जैसे मूंगफली में तेल होता है तो उसमें विषाणु नहीं आते, इसी प्रकार ब्रम्हचर्य का तेज शरीर के रोम रोम में हो जाता है, उसमें किसी तरह के रोग या विकार नहीं आ पाते हैं – चिंतन)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

  • 1995 के बीना-बारहा में आचार्य श्री के चातुर्मास में तीन विदेशी लोग आये,उन्होंने पूछा – इतनी कम उम्र में आप ब्रम्हचर्य कैसे रख पाते हैं जबकि आपके आसपास तमाम स्त्री और युवा लड़कियाँ आहार के समय आपको घेरे रहतीं हैं ?
    बच्चा जब काफी बड़ा हो जाता है तब तक उसकी माँ और बहनें उसे नहलाती रहतीं हैं,
    (जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तब भी बेटी और बहनें उसे नहलाती हैं) तो उनको विकार आता है क्या ?
    मैं हर स्त्री में माँ, बहन और बेटी देखता हूँ तो मुझे विकार कैसे आयेंगे ?
    विदेशी बोले – महावीर के बारे में पढ़ा तो बहुत था पर देखा आज ।
  • माली का काम सिर्फ उगाना ही नहीं उन्हें भगवान के चरणों तक पहुँचाना भी है ।
    हम गृहस्थों का काम सिर्फ बच्चों की उत्पत्ति ही नहीं, उनको भगवान के चरणों तक ले जाना भी है ।
  • आज गृहस्थी पाँच पापों की नाली बन गयी है, गृहस्थी में रहते हुये ये पाप ना भी बहें, हमारे अंदर तक बदबू तो कम से कम आयेगी ही ।
  • रति वे करते हैं जो काम के रोगी हैं, कुत्ता/चील भी शरीर में रति करते हैं पर वो क्षुधा के रोगी हैं, हम काम के रोगी हैं ।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

  • ग्रह उनको ही लगते हैं, जिन पर परिग्रह होती है ।
  • तन के अनुरूप ही मन का नग्न होना, आकिंचन है ।
  • तुम्बी तैरती,
    तैराती औरों को भी,
    सूखी या गीली ?
    सूखापन होना ही आकिंचन धर्म है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

    • आकिंचन का उल्टा – परिग्रह ।
      “परि” यानि चारों ओर, “ग्रह” यानि आपत्तियां ।
    • आ – आत्मा
      किंचन – कुछ या किंचित
      जिसका “कुछ” संसार हो और मुख्य आत्मा हो उसके आकिंचन धर्म होता है ।
    • परिग्रह और परिचय ये दोनों ही आकुलता के कारण हैं ।
      उस बाबाजी की लंग़ोटी की तरह जिसने एक लंगोटी रखने के लिये पूरी गृहस्थी बसा ली थी ।
      कागज के टुकड़े में एक हजार रूपये की शक्ति है, ऐसे ही लंगोटी में भी पूरी गृहस्थी बसाने की शक्ति है ।
    • परिग्रह यानि अपूर्ण/परतंत्र ।
      इसीलिये परिग्रह दु:ख का कारण है ।
    • संसार में अकेलापन दुखदायी लगता है, पर परमार्थ में अकेलापन सुखदायी है ।
    • ब्लड़ रिपोर्ट जब नार्मल होती है तब कहते हैं कि कुछ नहीं निकला और जब Defect होता है तब कहते हैं कि कुछ आया है,
      ये “कुछ” ही हमारे जीवन में Defect लाता है ।
    • हावड़ा ब्रिज देखने तमाम लोग जाते हैं क्योंकि वो बिना किसी सपोर्ट के है,
      ना लंगोट, ना सपोर्ट, ना वोट, ना खोट, उनके आकिंचन धर्म होता है, जिसे देखने देवता भी आते हैं ।
    • एक राजा जंगल में भटक गया, एक साधू की कुटिया में रुका, साधू को उसने रात भर आनंद में देखा, सुबह उसने पूछा – अकेले बिना किसी सपोर्ट के कैसे जीवन बिताते हो ?
      साधू ने कहा कि तुमने कैसे रात बितायी, तुम्हारे पास भी तो कोई सपोर्ट नहीं था ?
      राजा – मैं तो सोच रहा था कि एक दिन का मुसाफिर हूँ, काट लूंगा ।
      साधू – मैं भी यही सोचता हूँ की मैं भी एक ज़िंदगी का ही तो मुसाफिर हूँ, ऐसे ही निकाल लूंगा ।
      साधू बेघर होकर भी अपने घर में है, गृहस्थ घर वाला होकर भी बेघर रहता है ।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

  • आप आम को खाने से पहले उसे दबा दबा कर ढ़ीला करते हैं, फिर उसके ऊपर से टोपी (ड़ंठल) हटाते हैं, खाने से पहले चैंप निकालते हैं वर्ना फोड़े फुंसी हो जाते हैं ।
    त्याग धर्म में दबा दबा कर ढ़ीला करने का मतलब -अंटी ढ़ीली करना,
    ड़ंठल हटाने का मतलब – अपने घर के खजाने पर से ढ़क्कन खोलना,
    चैंप निकालने का मतलब – उपयोग से पहले त्याग करना,
    त्याग नहीं करोगे तो जीवन दूषित हो जायेगा ।
  • आचार्य श्री विद्यासागर जी

  • दान, आमदनी का 10 प्रतिशत ही नहीं, अपने समय का ,कार का उपयोग भी धर्म के खाते में 10 प्रतिशत जाना चाहिये ।
  • मुनि श्री सुधासागर जी

  • एक कंजूस सेठ को बावर्ची ने बहुत घी लगी हुयी रोटी दी ।
    सेठ नाराज हुआ, इतना घी !!!
    बावर्ची बोला क्षमा करें, गलती से मेरी रोटी आपके पास आ गयी ।
    उपयोग नहीं करोगे तो चोर उसका दुरुपयोग करेंगे ।

 

  • हाथी के एक कौर में से एक छोटा सा टुकड़ा गिर जाने से हजारों चीटिंयों का पेट भर जाता है ।
    तो क्यों ना दान करें।
  • मुनि श्री प्रमाणसागर जी

  • त्यागी हुयी चीजों को तो पशु भी वापिस नहीं स्वीकारते,
    चाहे वह त्यागी हुयी चीज उनके बच्चे की ही क्यों ना हो ।
  • श्री लालामणी भाई

  • कमरे में एक खिड़की खोलो तो थोड़ी सी ताजा हवा आती है, दूसरी खिड़की खुलते ही Cross Ventilation शुरू हो जाता है,
    एक खिड़की से हवा आती है, दूसरे से निकलती रहती है, स्वास्थ के लिये भी लाभदायक होता है ।
    और यदि Exhaust fan लगा दो तो ज्यादा फ़ायदा होता है ।
    इसमें पहली खिड़की आमदनी की, दूसरी खिड़की दान की ।
    आमदनी की खिड़की ज्यादा बड़ी होने पर आने वाली हवा (दौलत) के साथ साथ हानिकारक कीटाणु भी आ जाते हैं ।
  • चिंतन

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