- पुराने समय में पहले दीक्षा काल होता था तब शिक्षा काल,
इसी प्रकार भगवान के कल्याणकों में पहले दीक्षा कल्याणक फिर ज्ञानकल्याणक होता है ।
पर हमने उल्टा कर दिया – शिक्षा पहले देते हैं दीक्षा की बात बाद में आती है, इसीलिये हमारे बच्चे संस्कारित नहीं हो रहे हैं । - चुम्बक के साथ रह रह कर लोहे में भी चुम्बकीय गुण आ जाते हैं, संयम चाहते हो तो संयमी का सानिध्य करो ।
- चोर और भोगी की दृष्टि स्थिर नहीं रहती, इधर उधर ताकती रहती है ।
इसका इलाज़ क्या है ?
जैसे घोड़े की आँखों पर पट्टा जरूरी है ताकि उसकी दृष्टि इधर उधर भटके ना और वो अपने गंतव्य तक पहुंच जाये ।
ऐसे ही हमें अपने ऊपर संयम के कुछ प्रतिबंध लगाने होंगे । - हमारे जीवन में संयम क्यों नहीं आ रहा है ?
क्योंकि तुम 350 दिन कपड़े वालों के साथ रहते हो और 15 दिन दिगम्बर मुनियों के साथ रहते हो,
तो तुम असंयम की तरफ 350 यूनिट बढ़ोगे और संयम की तरफ 15 यूनिट ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
पं. रतनलाल जी – इन्दौर
सत्य कभी कड़ुवा होता ही नहीं,
बड़ी अजीब बात है !! अभी तक तो हम सुनते आ रहे हैं कि सत्य कड़ुवा होता है ।
जब हम सत्य कलुषताओं के लिफ़ाफे में रखकर देते हैं तब वो कड़ुवा लगने लगता है ।
अगर सत्य कड़ुवा होता तो भगवान तो जीवनपर्यंत असत्य ही बोलते रहते, क्योंकि उन्होंने तो कभी कड़ुवा बोला ही नहीं ।
गुरू मुनि श्री क्षमासागर जी
- असत्य और सत्ता की निवृत्ति के बिना सत्य में प्रवृत्ति हो ही नहीं सकती ।
- राग में हम अपने और अपनों को सत्य मान रहे हैं ।
- अरहंत नाम सत्य है/राम नाम सत्य है, ये हम मरे हुयों को सुना रहे हैं,
ज़िंदा में तो संबधी और व्यापार को ही सत्य मान रहे हैं । - मौन भी सत्य प्राप्ति कराने में कारण है, कम से कम असत्य से तो बचा ही लेता है ।
- सफेद बालों को काला करना, असली दांत गिरने पर नकली लगाना, सत्य से असत्य बनने की कोशिश है ।
- मोबाइल ने झूठ बोलना और बढ़ा दिया है ।
- हम जीवंतों में सत्य नहीं, पत्थर के भगवान के स्वरूप में सत्य है ।
- सत्य के भान के बिना सत्य का व्याख्यान हो ही नहीं सकता ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
- उत्तम शौच यानि लोभ समाप्त होने पर जो पवित्रता प्राप्त होती है ।
- उत्तम सोच वाले को ही उत्तम शौच प्राप्त होती है ।
- लाभ पर तो दृष्टि चलेगी पर यह दृष्टि लोभ में ना परिवर्तित हो जाये ।
- लोभी ही भोगी बन जाता है ।
- खुली आँख में छोड़ोगे (वैभव) तो योगी, बंद आँख में छूटेगा तो भोगी/रागी ।
बांध बांध कर क्यों छोड़ रहे हो जब सबको बंध बंध कर ही जाना है ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
-
- उत्तम आर्जव धर्म मतलब मायाचारी का उल्टा यानि सरलता ।
- नाटक में ना अटक यानि अपने जीवन को नाटक का रंगमंच मत बना लो,
करना कुछ, बोलना कुछ । - इस मायचारी से बचने के लिये क्या सोचें ?
अपने को मिट्टी का खिलौना मानो, ऐसे ही दूसरे सब प्राणी मिट्टी के खिलौने हैं,
सब मिटने वाले हैं, खिलौने का खेल थोड़े समय के लिए ही चलता है,
इस थोड़े समय के लिये हम अपनी दुर्गति क्यों करें, इस जन्म में और अगले जन्म में भी । - बचने का उपाय – सुनें गुरुजनों की, उसे समझें और अपने को संभालें ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
- धोखा देने में आप कामयाब इसीलिये हुये क्योंकि सामने वाले ने आप पर भरोसा किया था,
यानि इसीलिये नहीं की आप ज्यादा होशियार थे ।
ब्र. नीलेश भैया
-
- गिरगिट तो वातावरण के अनुसार रंग बदलता है पर मनुष्य एक ही वातावरण में 6 रूप बदलता है,
उसके गंदी से गंदी और अच्छी से अच्छी 6 लेश्यायें (भावनायें) होती हैं ।
- गिरगिट तो वातावरण के अनुसार रंग बदलता है पर मनुष्य एक ही वातावरण में 6 रूप बदलता है,
चिंतन
-
- मार्दव धर्म का बुंदेलखंड़ में मतलब – मान को मार दओ, उससे बना मार्दव ।
- मानना तभी संभव जब मान+ना, मान नहीं रहे,
या कहें मान जा, जब मान चला जाता है तभी जीवन में धर्म आता है ।
और जो नहीं मानता उसके जीवन में अधर्म । - किसकी मानना ?
देव, गुरू, शास्त्र की मानना । - मान करने वाले की तीन क्या कमजोरियाँ ?
मंच, माला और माईक । - पत्थर में भगवान मान लेने से भगवान मिल जाते हैं/हम भगवान जैसे बन जाते हैं ।
भगवान गुरु की मानते नहीं पर उनसे मांगते हैं ।
स्वयं को मना लो वरना मानना ही पड़ेगा, यानि खराब गति में जायेंगे तब मानना ही पड़ेगा । - मान “मैं” तक नहीं पहुंचने देता ।
- यदि मूंछ ऊपर रखी तो अगले जन्म में तुम्हारी पूंछ नीचे रहेगी या कहें नाक ऊपर रखने वालों की नाक ज़मीन पर घिसटती है,
जैसे हाथी बनकर उसकी सूंड़ नीचे घिसटती रहती है ।
या कहें मूंछ तो हमने काट दी पर पूंछ नहीं काटी इसलिये पूंछ वाले बनने की तैयारी कर रहे हैं ।
मुनि श्री विश्रुतसागर जी
- क्षमा आत्मा का धर्म है ।
- मनुष्य गलतिओं का पिटारा है, यदि क्षमा भाव नहीं रखा गया तो महायुद्ध शुरू हो जायेगा, सब कुछ नष्ट हो जायेगा ।
- खाना, पीना, छोड़ना आसान है, क्रोध छोड़ना कठिन, क्योंकि खाना पीना बाह्य है, क्रोध अंतरंग विकार ।
- अत: सब जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें ।
- पर्युषण पर्व की पूर्व संध्या पर आप सब को शुभकामनायें ।
- पर्व याद दिलाते हैं कि धर्म आत्मा का है ।
- यह शाश्वत पर्व अंदर बाहर कि सफाई करे और वह सफाई स्थिर रहे ,
उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच भावों को धारण कर हम अपना मन शुद्ध करें,
सत्य बोल कर वचन शुद्धि,
तथा संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रम्हचर्य से काय की शुद्धि करें । - शक्ति अनुसार पूरी श्रद्धा और उत्साह से अपने जीवन को पवित्रता की और परिवर्तित करें, यही कामना है ।
Everyone have two Eyes….
But no one has the same view.
(Mr. Arvind Barjatya)
आत्मानुभूति के अभाव में आत्मा की आहुति हो जाती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
विश्व धर्मसभा में गीता को सब धार्मिक पुस्तकों के नीचे रखा गया ।
स्वामी विवेकानंद से पूछा – आपको बुरा नहीं लगा ?
स्वामी विवेकानंद – नहीं, हमारा धर्म ही तो सब धर्मों की नींव है ।
God love the birds and invented trees,
Man love the birds and invented cages.
मंज़िल पाने के लिये रफ्तार की नहीं, सही दिशा कि जरूरत होती है ।
ज़िंदगी एक अभिलाषा है, अज़ब इसकी परिभाषा है ।
ज़िंदगी क्या है मत पूछो यारो, संवर गयी तो जन्नत और बिखर गयी तो तमाशा है ।
(Courtesy-Mr.Saurabh)
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