ब्रम्हचर्य = ब्रम्ह में चर्या (लीनता) ।

भूल जाओ कि तुम्हारे बिना कुछ नहीं होगा ।
ध्वजारोहण तभी होता है जब दोनों ओर की ड़ोरी सतर्कता से अपना अपना कार्य करती हैं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

अपने माथे पर यदि स्वयं टीका लगायें तो सही जगह पर और सही आकार का नहीं लगता है ।
यदि आप दूसरे के माथे पर लगायें, या दूसरा आपके माथे पर, तो सही लगता है ।

चिंतन

संसार के हर खेल और कार्य में कुछ नियम/बंधन होते हैं,
बंधन के बिना जीवन चलता नहीं है ।
अपने को बंधन में रखना उत्तम है,
दूसरों को रखना या दूसरों का बंधन मानना गुलामी/मोह है ।
या तो हम इंद्रियों और मन को बांध कर रखें या उनके बंधन में रह कर उनके गुलाम बन जायें ।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

उत्तर दिशा में पवित्र कैलाश पर्वत है ।
उस दिशा में पर्वत को स्मरण करके हम नमस्कार करते हैं ।

क्या उस दिशा में अपवित्र क्षेत्र नहीं हैं ?
हैं, पर हमारी दृष्टि पवित्रता की ओर रहती हैं ।

चिंतन

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