सतर्क रहो, “स” “तर्क” नहीं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Love is not only for fellow human beings,
but also for yourself, for all your internal and external organs.
Sri. Shelendra Singh
संसारी संकल्प लो तो घने विकल्प होते हैं,
धार्मिक संकल्प लो तो विकल्प समाप्त होते हैं ।
कर्तृत्व में कर्ता का भाव है, अहम् है,
कर्तव्य में बिना पाने की इच्छा के सेवा भाव है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
There must be more to life than just having everything.
(Mrs. Ekta)
अतिचार – माँ से “तू” का संबोधन
अनाचार – माँ के प्रति अकर्तव्य ।
चिंतन
लोहा यदि पड़ा रहे तो जंग लग जाती है ।
उसे तपाकर यदि उसकी सुई/चाबी बना ली जाये तो, जोड़ने/गुंथियों के ताले खोलने जैसी उपयोगी चीजें बन जाती हैं और जंग भी नहीं लगती ।
The most important time to hold your temper Is,
When the other person has lost that.
(Dr. Amit)
मि. फोर्ड़ (प्रसिद्ध कार कंपनी के मालिक) अमेरिका में बड़े सादगी से रहते थे, कपड़े भी बहुत सामान्य से पहनते थे, उनका दोस्त हमेशा उन्हें टोकता रहता था कि सूट-बूट में टिप-टॉप रहा करो । किन्तु वो ना मानते और कहते कि “मुझे यहाँ कौन नहीं जानता कि मैं फोर्ड़ हूँ, सो कुछ भी पहनने से क्या फ़र्क पड़ता है ?” एक बार वह अमेरिका से बाहर जा रहे थे तो उनके दोस्तों ने एक मंहगा सूट लाकर दिया । तो फोर्ड़ बोले – “कि मुझे वहाँ कौन जानता है सो मैं वहाँ टिप-टॉप सूट पहनकर जाऊँ ?”
सादगी हमें और ऊपर उठाती है ।
(श्री धर्मेंद्र)
शिष्य को गुरू कुछ देते नहीं हैं,
सिर्फ पहचानने की कला बता देते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Only dead fish go with the flow of water.
(Mrs. Ekta)
साधू बनाये नहीं जाते, बन जाते हैं ।
एक भक्त ने भगवान से कहा –
मैं आपसे मिलना चाहता हूँ ।
भगवान – जब चाहो मिल लो, मेरे दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं ।
भक्त – पर मैं आपको पहचानुंगा कैसे ?
भगवान – अपने आप को पहचान लो, बस मुझे पहचानने में दिक्कत नहीं आयेगी ।
(शशि)
My pain be the reason for somebody’s laugh.
But my laugh must never be the reason for somebody’s pain.
– Aacharya Vishudh Sagar Ji
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