किसी की सहायता करते समय सोचो – “यह उसका आखिरी दिन है”
ताकि अधिक से अधिक और मन से कर सको ।
सहायता करने के बाद सोचो – “यह मेरा आखिरी दिन है”
ताकि बदले में लेने का भाव ना आ जाये ।

चिंतन

नीति से चपरासी बनना भी मंज़ूर होना चाहिए, अनीति के साथ चक्रवर्ती बनना भी उचित नहीं ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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