मोह – घरवालों/प्रियजनों से,
पुरूषार्थ – मोह कम करने का प्रयास ।
श्री लालमणी भाई
सबसे ज्यादा उधारी बच्चों की माँ पर या माँ की बच्चों पर होती है,
तभी तो सबसे ज्यादा कष्ट सहकर उन्हें संसार में लाती है और सबसे ज्यादा प्रेम भी करती है ।
जैसे ड़ॉक्टर को हंसते हंसते मोटी मोटी रकम देकर हम खुश होते हैं ।
चिंतन
We need everything ‘permanent’ in our ‘temporary’ life.
(Dr. Sudheer)
यदि प्रगति कर रहे हो तो किंचित दिखना तो चाहिये ।
यदि बर्फ खाने जा रहे हो / बर्फ के करीब जा रहे हो तो शीतलता तो आयेगी ही ।
ब्र. नीलेश भैया
‘भ’ – भावना
‘ई’ – ईश्वर
‘त’ – तारतम्यता
भावना पूर्वक ईश्वर से तारतम्यता
Success is the sum of small efforts, repeated day in and day out.
(Mr. Sanjay)
किसी अपवित्र वस्तु के संपर्क में आकर पवित्र वस्तु भी अपवित्र हो जाती है ।
अपवित्र भोजन लेने वालों के अंदर का धर्म भी अपवित्र हो जाता है ।
श्री लालमणी भाई
चित्त की प्रसन्नता/पवित्रता ही पुण्य है ।
आचार्य श्री विभवसागर जी
Live in Peace,
Not in Piece.
(Dr. Amit)
अर्जुन को साक्षात गुरू सिखा रहे थे,
एकलव्य मूर्ति में मूर्तिमान से शिक्षा लेकर अर्जुन से आगे निकल गये ।
श्री रत्नत्रय – 3
गौरव पद/गुणों का होता है,
गर्व वस्तु/शरीर का होता है ।
गौरव दूसरों के द्वारा दिया जाता है,
गर्व ख़ुद किया जाता है।
गौरव गुण है, गर्व अवगुण ।
“The history of the world is the history of a few people who had faith in themselves.”
– Swami Vivekanand
पूर्व की संस्कृति : कम में संतुष्टि
पश्चिम की संस्कृति : अधिक से असंतुष्टि
चिंतन
घर को आश्रम बनायें, पर आश्रम को घर ना बनायें
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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