सही दिशाबोध होने पर मंज़िल अवश्य मिलती है ,
क्योंकि सही दिशा का प्रसाद ही, सही दशा का प्रसाद है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

यात्री ने कंड़क्टर से एक टिकट मांगते हुये, एक हजार का नोट दिया ।
कंड़क्टर – कहाँ का टिकट चाहिए ?
यात्री – तुमको हजार रूपये दिये ना !! बस एक टिकिट दे दो ज्यादा पूछताछ करने की ज़रूरत नहीं है ।

हम भी ऐसे ही पैसा/समय बर्बाद कर रहे हैं पर हमको मंज़िल का पता नहीं है ।
यदि कोई पूछता भी है तो हमें झुंझलाहट आती है, यह प्रश्न ही निरर्थक लगता है ।

गुरू श्री क्षमासागर जी से पूछा – अपनी माँ को देखकर आपको राग नहीं होता ?

गुरू श्री – सब माँ, बहनों को माँ मानने लगो तो एक माँ में राग क्यों होगा !!

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

“गलती” जीवन का एक पन्ना है, पर “रिश्ता” पूरी किताब है ।
जरूरत पड़ने पर गलती का पन्ना फाड़ देना लेकिन एक पन्ने के लिये पूरी किताब मत खो देना ।

(श्री मनीष – ग्वालियर)

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728