जिसके सामने सब कुछ कह सकते हो, पर गुरु के कहने के बाद कुछ भी नहीं कह सकते। जैसे वकील जज के सामने कुछ भी कह सकता है पर जज के निर्णय देने के बाद कुछ भी नहीं कह सकता।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
पुलिस स्त्रीलिंग है सो उन्हें माँ जैसा व्यवहार करना चाहिये, जो बच्चों को गलती पर मारती भी है और सुधारने के लिये प्रेम भी करती है।
(दर्शनार्थ आये IG को संबोधन)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
हे स्वार्थ ! तेरा शुक्रिया।
एक तू ही है,
जिसने लोगों को आपस में जोड़ रखा है।
(सुरेश)
रे जिया ! क्रोध काहे करै ?
वैद्य पर विष हर सकत नाही, आप भखऔ मरे।
(दूसरे का विष उतारने को वैद्य के विष खाने से विष उतरेगा नहीं)
बहु कषाय निगोद वासा*, क्षिमा ध्यानत तरै। रे जिया–
*नरक से भी दुखदायी पर्याय
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (द्यानतराय जी)
कुण्डलपुर यात्रा में टैक्सी ड्राइवर माध्यस्थ Speed से चल रहा था (80/90 k.m./h)।
कारण ?
पेट्रोल बचाकर इनाम पाया (1 हजार रुपये का)।
हम भी जीवन में Optimum Speed रखें (न कम, न ज्यादा) तो कार रूपी शरीर को स्वस्थ रखेंगे, पूरी उम्र जियेंगे।
चिंतन
जिसको पाषाण में भगवान के दर्शन होते हैं, एक दिन उसे साक्षात भगवान के दर्शन हो जाते हैं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
दर्पण का मूल्य भले ही हीरे के सामने नगण्य हों, पर हीरा पहनने वाला दर्पण के सामने ही जाता है।
(एन.सी.जैन- नोएडा)
Ritual → भगवान को मानना/ धार्मिक क्रियाएँ करना।
Spiritual → भगवान की मानना/ धर्मात्मा।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
तुम अगर चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे/ बहुत दूर निकल सकते थे।
तुम ठहर गये, लाचार सरोवर की तरह;
तुम यदि नदिया बनते तो, कभी समुद्र भी बन सकते थे।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सौभाग्य → त्रैकालिक (भूत, भविष्य, वर्तमान)।
अहोभाग्य → वर्तमान का।।
(अहोभाग्य जो सौभाग्य को Cash करले)*
इसलिये अहोभाग्य, सौभाग्य से बहुत महत्वपूर्ण है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* Cash न कर पाये तो दुर्भाग्य
बेहतर छिनने पर विश्वास रखें → बेहतरीन मिलने वाला है।
धर्मात्मा पुण्यहीन …. पुजारी, पूरा जीवन गरीबी के साथ धार्मिक क्रियाएँ करता रहता है।
धर्मात्मा पुण्यवान …. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
दिखावे के धर्म में पुण्य/ लाभ कम, पर दूसरों पर धर्म की प्रभावना पूरी।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
सुख/ दु:ख एक ही बगिया के पौधे हैं।
इन्हें लगाने/ सींचने/ संवारने/ बढ़ाने वाले माली हम खुद ही हैं।
(सुरेश)
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