When mind is weak, situation is a problem.
When mind is balanced,situation is challenge.
When mind is strong, situation is an opportunity.

(Dr. S. M. Jain)

धनतेरस को जैन आगम में धन्य-तेरस या ध्यान-तेरस भी कहते हैं ।
भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये ।
तभी से यह दिन धन्य-तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी/पं. रतनलाल बैनाडा जी

एक Non-Veg लेने वाले आध्यात्मिक प्रकृति के वकील ने कहा –
अहिंसा धर्म मानने वाले अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं । जिन मतों में अहिंसा का महत्त्व नहीं है या कम है, वे अपने मत को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ।
फ़ैसला कैसे हो ?
फ़ैसला तो मरने के बाद ऊपर जाकर ही हो पायेगा ।
पर ये तय है कि अहिंसा मत मानने वाले वे गुनाह तो करते ही नहीं जिनकी दूसरों के मतों के शास्त्रों में मनाही है ।
लेकिन दूसरे मत वाले ऐसे गुनाह खूब करते हैं, जिनको अहिंसा मत में निषेध कहा है ।
यदि ऊपर जाकर दूसरे मत वाले सही सिद्ध हुये तब भी अहिंसा वाले तो Least Risk पर रहेंगे ।
लेकिन ख़ुदानाख़ास्ता अहिंसा धर्म सही निकल गया तो हमें क्या सज़ा मिलेगी इसका ज़िक्र हमारी धर्म पुस्तकों में भी नहीं मिलेगा । क्योंकि हमारी पुस्तकों में उन्हीं गुनाहों की सज़ा लिखी है जिनको उन्होंने गुनाह माना है ।

श्री आशीषमणी/श्री सौरभ जैन – नोयड़ा

श्रीमति राधाबाई* ने एक दिन बहुत अच्छी मालिश की । मैंने उसकी बहुत प्रशंसा कर दी, तो बाई नाराज़ हो गयी ।
कारण ?
बाई – तुमने मेरा भगवान मार दिया ।
कैसे ?
बाई – प्रशंसा सुनकर मन में अभिमान आता ही है,
और जिस मन में अभिमान होता है उसमें भगवान नहीं रहते ।

* तेल मालिश करने वाली बाई

शशि

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