हम लक्ष्मी के स्वागत में सजावट करते हैं/दीप जलाते हैं/पटाखे चलाते हैं(पर भूल जाते हैं-प्रदूषण को,अहिंसा को)
दीपावली दो महान कार्यों के लिये मनायी जाती है-
1) महावीर भगवान ने सबसे बड़ा वैभव (समवसरण)छोड़ा।
2) श्री राम ने लंका जीत कर वहाँ का राज्य छोड़ा।
याने-हम लक्ष्मी को बुलाते हैं ताकि हमारा संसार बढ़े,
पर हमारे भगवानों ने लक्ष्मी को छोड़ा और पाया मोक्ष-लक्ष्मी को।
आप क्या चाहते हो?
संसार या संसार से मुक्ति??
चिंतन
When mind is weak, situation is a problem.
When mind is balanced,situation is challenge.
When mind is strong, situation is an opportunity.
(Dr. S. M. Jain)
धनतेरस को जैन आगम में धन्य-तेरस या ध्यान-तेरस भी कहते हैं ।
भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये ।
तभी से यह दिन धन्य-तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी/पं. रतनलाल बैनाडा जी
उलझन में समता का ‘स’ लगा लो तो सुलझन हो जायेगी ।
(श्री अरविंद)
Pray God by heart…
Not by Habit…
To Open your ‘EYE’…
Close your ‘I’…
(Mr. Sanjay)
दो दिन की ज़िंदगी है, इसे दो उसूलों से जिओ –
रहो तो ‘फूलों’ की तरह…
और
बिखरो तो ‘खुश्बू’ की तरह ।
(श्री धर्मेंद्र)
पुण्य के फल को भोगना ही पापबंध है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
For any success
If there is a way… “I will Find It”,
&
If there is no way… “I will Make It”.
Great Chankya – (Mr. Dharmendra)
एक Non-Veg लेने वाले आध्यात्मिक प्रकृति के वकील ने कहा –
अहिंसा धर्म मानने वाले अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं । जिन मतों में अहिंसा का महत्त्व नहीं है या कम है, वे अपने मत को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ।
फ़ैसला कैसे हो ?
फ़ैसला तो मरने के बाद ऊपर जाकर ही हो पायेगा ।
पर ये तय है कि अहिंसा मत मानने वाले वे गुनाह तो करते ही नहीं जिनकी दूसरों के मतों के शास्त्रों में मनाही है ।
लेकिन दूसरे मत वाले ऐसे गुनाह खूब करते हैं, जिनको अहिंसा मत में निषेध कहा है ।
यदि ऊपर जाकर दूसरे मत वाले सही सिद्ध हुये तब भी अहिंसा वाले तो Least Risk पर रहेंगे ।
लेकिन ख़ुदानाख़ास्ता अहिंसा धर्म सही निकल गया तो हमें क्या सज़ा मिलेगी इसका ज़िक्र हमारी धर्म पुस्तकों में भी नहीं मिलेगा । क्योंकि हमारी पुस्तकों में उन्हीं गुनाहों की सज़ा लिखी है जिनको उन्होंने गुनाह माना है ।
श्री आशीषमणी/श्री सौरभ जैन – नोयड़ा
श्रीमति राधाबाई* ने एक दिन बहुत अच्छी मालिश की । मैंने उसकी बहुत प्रशंसा कर दी, तो बाई नाराज़ हो गयी ।
कारण ?
बाई – तुमने मेरा भगवान मार दिया ।
कैसे ?
बाई – प्रशंसा सुनकर मन में अभिमान आता ही है,
और जिस मन में अभिमान होता है उसमें भगवान नहीं रहते ।
* तेल मालिश करने वाली बाई
शशि
If you can not find the brighter side of life then polish the darker side.
Attitude of adjustment is the only instrument to live a great life.
(Dr. S. M. Jain)
माल और मल में फ़र्क सिर्फ ‘आ’ का है,
चंदन हो, केसर, पुष्प या बादाम हो, कैसा भी माल हो, शरीर के नज़दीक आते ही मल बन जाता है ।
(श्रीमति रिंकी)
एक सवाल –
रिश्तों का क्या मतलब होता है ?
जहाँ मतलब हो वहाँ रिश्ता ही कहाँ होता है ?
(ड़ॉ सुधीर)
Someone asked a Philosopher – ‘How do you believe that God exists ?’
His smart answer was – ‘Absence of evidence is not the evidence of his absence…’
(Mr. Sanjay)
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