गृहस्थों के दो ही दुश्मन होते हैं – राग और द्वेष
साधुओं का एक ही दुश्मन होता है – राग

बाई जी

मिट्टी के जिस बर्तन में तुम स्वादिष्ट भोज्य लेकर हर्षित हो रहे हो, वह कुम्हार की भट्टी में तपकर आता है ।
बांसुरी पहले छेद कराने का शोक सह चुकी है ।
निर्विकल्प अवस्था में ही हर्ष/शोक रहित स्थिति रहती है ।

श्री ख़लील ज़िब्रान

मन लगाने के लिये सामूहिक क्रियायें करें,
भक्ति अकेले में सबसे अच्छी होती है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

हमें मालूम ना था कि आग इतनी गरम होती है,
पता तब चला जब हमारा खुद का घर जला ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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