लक्ष्मी उसी के गले में वरमाला पहनाती है,जो उसे नहीं चाहता।

समुद्र का खारा पानी पीने योग्य नहीं,
जब तपता है तब मीठा बनकर जीवन में बहार ला देता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

दो भाईयों में बटवारा एक कीमती शीशे को लेकर अटक गया,
कौन ले !
गुरू के पास गये,उन्होंने शीशे को पटक दिया, दरार पड़ गयी ।

गुरू – शीशे में दरार तो सही जा सकती है पर सम्बंधों में नहीं ।

आचार्य महाश्रमण जी

समय के साथ –

योगी का चेहरा सौम्य और सुंदर होता जाता है,
भोगी का चेहरा विकृत और असुंदर होता जाता है ।

उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी

अतीत में जीना मोह है, भविष्य में जीना लोभ है और वर्तमान में जीना कर्मयोग है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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