चलते चलते देखता हुँ,
अनायास ही कोई ना कोई साथ हो जाता है ।
कुछ दूर,
वह साथ चलता है ।
फ़िर या तो ठहर जाता है या,
रास्ता ही बदल लेता है ।

मैं यह सोच कर आगे बढ़ जाता हुँ,
कि साथ चलने का सुख,
इतना ही होता है !!!

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
(प्रेषक : श्रीमति शिल्पी जैन – शिकागो)

जार्ज वर्नाड़ शा के भाषण समाप्त होने पर, एक महिला ने आकर भाषण को सराहा पर शिकायत की – आप बीच बीच में अपनी पेंट को बार बार ऊपर कर रहे थे, वह बहुत बेहूदा लग रहा था ।
जार्ज वर्नाड़ शा – यदि पेंट को ऊपर नहीं करता तो और भी बेहूदा दिखता ।

(ड़ा. एस. एम. जैन)

वनस्पति घी खरीदते समय पूँछते हैं – यह असली तो है ना ?
नकली को असली मानने लगे हैं, क्योंकि आदत पड़ गयी है ।

हम भी मोह में संसार को अपना हितैषी मानने लगे हैं, असली यानि भगवान/धर्म को नहीं ।

चिंतन

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