अज़ब सुलगती हुई लकड़ियाँ हैं, ये सम्बंध !
पास रखो तो जलने लगतीं हैं,
दूर ले जाओ तो धुंआ देतीं हैं (आंसू बहाती है ) ।

जो हमारे करीब हैं और रोज का मिलना जुलना है, उन्हें हमसे शिकायत बहुत हैं ,
जो हमसे दूर हैं और कभी कभी मिलना होता है, उन्हें हमसे कोई शिकायत नहीं ।

सो नज़दीकियों से अब हमें ड़र लगता है !!

(धर्मेंद्र )

ज़िंदगी भर एक ही भूल करते रहे,
दिल से रोये और चेहरे से हंसते रहे ।
चाह कर भी भूल सुधार नहीं पाये,
क्योंकि धूल थी चेहरे पर और आइना साफ करते रहे ।।

(श्री संजय)

(श्री आर. के. जैन के शिवपुरी collector का चार्ज संभालने पर )

1. Character वाला ही collector (जिलाधीश) बनता है ,
Characterless तो सिर्फ  collector (अपने लिये पैसे collect करने वाला) होते हैं |

श्री लालमणी भाई

2. कार्यप्रणाली वैसी जैसी श्री तुलसीदास जी ने कही –

“मुखिया मुख सौ चाहिये, खान पान में एक ।
पालै पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक ।।”

श्री जे. पी. पाठक

छोटा मोटा जादूगर भी अपना जादू सभ्रांत/धनाढ़्य लोगों को ही दिखाता है ।
तो देवकृत अतिशयों की आजकल कैसे आशा करते हैं,
जबकि हमारे पुण्य बहुत कम होते जा रहे हैं ।

चिंतन

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