कैसी विडंम्बना है !
अचेतन को हम चेतन के सुख-दुःख का कारण मानते हैं !!
जैसे कार से सुख , न होने पर दुःख ।

मशाल बनें, जो स्वंय प्रकाशित होती है तथा दूसरों को भी प्रकाशित करती है ।
कम से कम, गीली लकड़ी ना बनें जो खुद भी प्रकाशित नहीं हो पाती और दूसरों की आंखों में प्रकाश की जगह धुंआ देती है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

प्रकृति का हर काम मंद/सहज है, पर कुछ भी miss नहीं होता ।
हमारा हर काम तेज/हड़बड़ी में होता है, इसलिये हम आवश्यक काम भी miss कर जाये हैं ,
धर्म, परोपकार, कर्तव्य आदि ।

चिंतन

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