पूज्यों की पूजा,
पुजारी बनकर(भिखारी बनकर नहीं),
पूज्य बनने के लिये ।
मुनि श्री उत्तम सागर जी
कैसी विडंम्बना है !
अचेतन को हम चेतन के सुख-दुःख का कारण मानते हैं !!
जैसे कार से सुख , न होने पर दुःख ।
मशाल बनें, जो स्वंय प्रकाशित होती है तथा दूसरों को भी प्रकाशित करती है ।
कम से कम, गीली लकड़ी ना बनें जो खुद भी प्रकाशित नहीं हो पाती और दूसरों की आंखों में प्रकाश की जगह धुंआ देती है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
When we focus on problems, we’ll have more problems….
When we focus on solutions, we’ll have more opportunities.
(Dr. S.M.Jain)
अधर्म – बदला लेना ।
धर्म – बदल लेना , अपने आप को ।
संसार में रहो , पर रमण करो अपने में ।
If Problem has no solution,
it may not be a Problem,
but a fact,
not to be solved,
but to be coped up with.
(धर्म-ध्यान बढायें)
टूटे हुये कप से भी चाय तो पी जा सकती है ।
घट(शरीर) के घात से दीपक(ज्योति/आत्मा) का नाश नहीं होता ।
भग = ज्ञान
वान = वाला
हमारी संस्कृति कहती है –
संसार से भागो मत और संसार को भोगो मत, बस जागो ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Truth is simple..
But..
The moment you try to explain,
It becomes difficult..
(Mr. Sanjay)
मैत्री – दूसरे जीवों को दुख: ना हो, ऐसी अभिलाषा ।
प्रमोद – गुणीजनों को देखकर अंतरंग की भक्ति और अनुराग ।
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