प्रकृति का हर काम मंद/सहज है, पर कुछ भी miss नहीं होता ।
हमारा हर काम तेज/हड़बड़ी में होता है, इसलिये हम आवश्यक काम भी miss कर जाये हैं ,
धर्म, परोपकार, कर्तव्य आदि ।
चिंतन
To overcome Laziness :
“Every drop of our sweat at young age will reduce ten drops of tears at older age.”
(Dr. Sudheer)
दर्पण निहारना – माने हारना ।
(अशाश्वत/नश्वर शरीर के हाथों, शाश्वत/नित्य आत्मा की अस्वीकृति)
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
जो बुढ़ापे में बसों में धक्के खा खा कर अपने बच्चों के लिये पैसे बचाते हैं,
ताकि उनके बच्चे टैक्सी में चल सकें ।
चिंतन
Motivation is not a product of external influence ;
It is a natural product of our desire to achieve something and our belief that we are capable.
(Mr. Dharmendra)
भगवान के दर्शन करने नहीं, भगवान में अपने दर्शन करने के लिये जाना चाहिये ।
औषधि इसलिये ली जाती है ताकि आगे औषधि ना खानी पड़े ।
भक्ति, भक्ति छोड़ने के लिये ।
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी
मच्छर जब तक खून चूसता रहता है तब तक शांत रहता है,
जैसे ही उसे खून देना बंद करते हैं, वो भिनभिनाने लगता है/नाराज हो जाता है ।
चिंतन
We always worry about our looks…
But the truth is that they neither matter to those who love us nor to those who don’t love us.
(Mr. Sanjay)
लहर नई हो सकती है,लहर पुरानी भी हो सकती है, परन्तु सागर न तो नया है ना पुराना।
बादल नये हो सकते है, पुराने भी हो सकते हैं ,परन्तु आकाश ना तो नया है ना पुराना ।
‘सत्य भी नया या पुराना नहीं होता ।
सत्य सनातन है, शास्वत है, सदा है ।
सत्य न तो जन्म धारण करता है, ना पुराना होता है और न नष्ट होता है
श्री सुज्ञान मोदी- नोयड़ा
ज्ञान तुम्हारे जीवन की दिशा निर्धारित करता है और वैराग्य जीवन की दशा को परिवर्तित करता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
किसी की भी उधारी लेकर मर जाना, पर भगवान की उधारी लेकर मत जाना क्योंकि भगवान तो किसी की उधारी अपने पास रखते नहीं हैं, उनकी उधारी रखी तो बहुत भारी पड़ेगी ।
मरने के कुछ समय पहले ही सही पर वैसे बन जाना जैसा वे चाहते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
नीचे स्तर का चिंतन तो चिंता है,
अवनति का कारण है ।
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी
The one who limps, is still walking.
(Toshita)
मुंबई की श्रीमति मोहनाबाई दोषी (75 वर्षीय) ट्रेन से बाहर जा रहीं थीं, स्टेशन पर उनकी आवाज बंद हो गई । बच्चे अस्पताल ले गये ।
आवाज वापस आने के बाद मोहना जी ने घर जाने से इंकार कर दिया और सीधे आचार्य श्री सुनीलसागर जी महाराज के पास पहुँच गईं । बच्चों के तमाम विरोध के बावजूद 16 फरवरी को आप दीक्षा लेकर साध्वी ( क्षुल्लिका श्री अभयमति माताजी ) बन गईं ।
जिनके मन में वैराग्य और अपने कल्याण की भावना होती है उन्हें ना घर वाले रोक पाते हैं और ना ही क्षीण शरीर ।
(श्रीमति दीपा – मुंबई)
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