जो मंदिर हंसते हुये जाता है,
और रोते हुये मंदिर से लौटता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
वस्तु/व्यक्ति, “बाजा” है जो अच्छा या बुरा नहीं होता,
उससे निकली “ध्वनि” , दृष्टि है जो शुभ और अशुभ होती है ।
इसी बाजे से शादी की मंगल ध्वनि निकलती है और मृत्यु का शोक भी।
“मल” भी किसी का भोजन बन जाता है, तो बुरा कैसे ?
आचार्य श्री विशुद्धसागर जी
Having a sharp memory is good for the BRAIN.
But ability to forget is a lot better for the HEART.
(Mr. Sanjay)
कट्टरवादी अपने धर्म का दीपक तो जलाते हैं पर उससे दूसरे धर्मों को भी जलाते रहते हैं ।
दृढ़तावान अपने धर्म के दीपक की रक्षा करता है और दूसरों को भी प्रकाशित करता है,
पर जलाता किसी को नहीं है ।
चिंतन
किसी भी Non-veg Hotel के आगे “शुद्ध मांसाहार भोजनालय” नहीं लिखा होता है,
शाकाहार भोजनालय के आगे “शुद्ध शाकाहारी भोजनालय” तो लिखा मिलता है पर “विशुद्ध” शब्द का प्रयोग नहीं होता है,
“विशुद्ध” शब्द का प्रयोग तो धार्मिक देव, शास्त्र, गुरू के लिये ही होता है जैसे आचार्य श्री विशुद्धसागर जी आदि ।
हम सब को अपनी यात्रा शुद्ध से विशुद्ध की ओर करनी है ।
चिन्तन
Solve simple mistakes early before it leads to big problem.
Because we always slip from small stones and not from a mountain.
(Mr. Pranjal)
पवित्रता और अहिंसा की दृष्टि से बाजार की चीजों का त्याग तो करना चाहते हैं पर किसी के यहां जाने पर बाजार की चीजें खानी पड़ती हैं, इसलिये त्याग नहीं कर पाते ।
किसी के घर जायें तो बोलें – ‘हम तो आपके हाथ की बनी चीजें ही खायेंगे, बाजार की चीजें तो बाजार में खाते ही रहते हैं ।
इससे वह बुरा मानने कि जगह प्रसन्न ही होगा ।
भगवान जब हर जगह विद्यमान है तो मंदिर जाने की क्या जरूरत ?
हवा जब हर जगह है तो टायर में हवा भरवाने के लिये पंप स्टेशन जाने की क्या जरूरत ?
क्योंकि हर जगह हवा का concentration नहीं होता, इसलिये पंप स्टेशन पर ही जाना होता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Some can make you cry and give you tears.
Many can make you laugh and give you smiles.
But only few can give you “Laughing tears” & “Crying smiles”.
(Mr. Sanjay)
बुद्धि के औजार से ज़िंदगी सुलझती नहीं है और उलझ जाती है ।
ज़िंदगी सुलझती तो शुभ कर्मों से ही है ।
सुश्री श्रद्धा
रागी – तू नहीं मिला तो जान दे दूंगा ।
वीतरागी – तू नहीं मिला तो जान जाने पर तुझ जैसा बन जाउंगा/तुझ में मिल जाउंगा ।
चिंतन
Anger makes us small than what we are,
And forgiveness makes us bigger than what we are not.
(Smt. Shuchi)
घर का मुखिया मुख की तरह होना चाहिए ।
मुख खाना खाकर शरीर (परिवार/समाज) के सब अंगों तक बिना भेदभाव के पहुँचाता है ।
मुनि श्री निर्णयसागर जी
प्रैस किये हुये कपड़ों पर थोड़ी देर में ही सलवटें पड़ जाती हैं ।
युवा शरीर पर भी झुर्रियाँ पड़ती ही हैं ।
फिर इस शरीर की देखभाल करने में इतना समय क्यों बरबाद करते रहते हैं !!
चिंतन
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