एक ज़ोकर ने लोगों को एक ज़ोक सुनाया, सब लोग बहुत हँसे,
उसने वही ज़ोक दुबारा सुनाया तो कम लोग हँसे,
उसने वही ज़ोक फिर से सुनाया तो कोई भी नहीं हँसा ।

फिर उसने एक बहुत प्यारी बात बोली –
अगर तुम एक खुशी को लेकर बार बार खुश नहीं हो सकते, तो एक ग़म को लेकर बार बार क्यों रोते हो ?

(श्री संजय)

मुंबई महानगर में जैन संत आचार्य श्री सुबाहुसागर जी महाराज की सल्लेखना पूर्वक समाधी 4 नवम्बर को हो गई ।

इसीतरह मुनि श्री संयमसागर जी की समाधी 23 अक्टूम्बर को हुई थी ।

वृद्धावस्था में धर्म साधना ना हो पाने की वजह से कई दिनों से आपने अन्न जल का त्याग कर दिया था ।
अंत समय दूसरे मुनिराज तथा श्रावकों के सानिध्य में भगवान के नाम का उच्चारण/स्मरण करते हुये आपने शांतिपूर्वक देह का त्याग कर दिया ।

जब अपनी इच्छायें नहीं रह जातीं तब वे दूसरों की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं ।
इसीलिये बुजुर्गों ( तथा साधूओं ) से आर्शीवाद लिया जाता है ।

श्री रविशंकर जी

स्व. श्री होतीलाल जी (वरवाना) कई गांवों के जमींदार थे । उनके सेवक जब कोई गलती करते तो आप जूते उतार कर उनकी पिटाई कर देते थे । जब सेवक रोने लगते तो उनको मिठाई खाने को पैसे दे देते थे । सेवक बाहर जाकर खुश होकर मिठाई खाते और सबको बड़े गर्व से बताते कि मालिक ने आज जूतियाँ लगाईं ।

क्या सांसारिक सुख इसी तरह की मिठाई नहीं है जो बड़े दुख और अपमान के बाद थोड़ा सा इंद्रिय सुखाभास देती है ?

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