स्व. श्री होतीलाल जी (वरवाना) कई गांवों के जमींदार थे । उनके सेवक जब कोई गलती करते तो आप जूते उतार कर उनकी पिटाई कर देते थे । जब सेवक रोने लगते तो उनको मिठाई खाने को पैसे दे देते थे । सेवक बाहर जाकर खुश होकर मिठाई खाते और सबको बड़े गर्व से बताते कि मालिक ने आज जूतियाँ लगाईं ।

क्या सांसारिक सुख इसी तरह की मिठाई नहीं है जो बड़े दुख और अपमान के बाद थोड़ा सा इंद्रिय सुखाभास देती है ?

कल के दिन पहले श्री राम अपने घर वापिस आये, फ़िर इसी दिन श्री महावीर स्वामी मोक्ष गये मानो मोक्ष का रास्ता बता रहे हों –
पहले अपने अन्दर आओ तब मोक्ष मिलेगा।

चिंतन

दीपावली की पहली रात को आचार्यश्री ध्यान में बैठे और सुबह जब बाकी साधु और श्रावक लोग आये तो देखा कि आचार्यश्री की आँखें लाल थीं और अश्रुधारा बह रही थी । लगता था आचार्यश्री पूरी रात सोये नहीं थे और ध्यान मुद्रा में ही बैठे रहे ।

पूंछने पर बताया – देखो ! महावीर भगवान आज ही सुबह अपना कल्याण करके मोक्ष पधारे थे, पता नहीं हमारा कल्याण कब होगा ?

श्री आर. के. जैन ( Ad.Commissioner) के पास बहुत लोग दीपावली पर मिलने आते थे और बहुत सारी आतिशबाजी भी लाते थे । घर के बच्चे आतिशबाजी चलाते थे तथा सेवकों को भी बांटी जाती थी ।
धीरे धीरे बच्चों में विवेक जागा और उन्होंने आतिशबाजी ना चलाने का नियम लिया । अब आतिशबाजी सेवकों में बंटने लगी ।
अगले वर्षों में सेवकों को भी बंटना बंद हुई और उनके असंतोष के वाबजूद आतिशबाजी ना देने का निर्णय ले लिया गया ।

अहिंसा की रक्षा और वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिये हम सब भी इस संस्मरण से प्रेरणा लें और अपने बच्चों को समझायें ।

जिसकी आने की तिथि निश्चित नहीं,
ऐसे मेहमान के आने पर आप घबराते हैं, दु:खी होते हैं ? या उनका स्वागत करते हैं ?

मृत्यु भी तो अतिथि है, उसका स्वागत क्यों नहीं करते ??

चिंतन

जो बातें/चीजें , बचपन/अज्ञानता में फालतु लगती थीं, बड़े होने/ज्ञान आने पर बहुत important लगने लगती हैं और जो पहले important लगती थीं, वो फालतु लगने लगती हैं ।

चिंतन

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