दीपावली की पहली रात को आचार्यश्री ध्यान में बैठे और सुबह जब बाकी साधु और श्रावक लोग आये तो देखा कि आचार्यश्री की आँखें लाल थीं और अश्रुधारा बह रही थी । लगता था आचार्यश्री पूरी रात सोये नहीं थे और ध्यान मुद्रा में ही बैठे रहे ।
पूंछने पर बताया – देखो ! महावीर भगवान आज ही सुबह अपना कल्याण करके मोक्ष पधारे थे, पता नहीं हमारा कल्याण कब होगा ?
श्री आर. के. जैन ( Ad.Commissioner) के पास बहुत लोग दीपावली पर मिलने आते थे और बहुत सारी आतिशबाजी भी लाते थे । घर के बच्चे आतिशबाजी चलाते थे तथा सेवकों को भी बांटी जाती थी ।
धीरे धीरे बच्चों में विवेक जागा और उन्होंने आतिशबाजी ना चलाने का नियम लिया । अब आतिशबाजी सेवकों में बंटने लगी ।
अगले वर्षों में सेवकों को भी बंटना बंद हुई और उनके असंतोष के वाबजूद आतिशबाजी ना देने का निर्णय ले लिया गया ।
अहिंसा की रक्षा और वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिये हम सब भी इस संस्मरण से प्रेरणा लें और अपने बच्चों को समझायें ।
नियम/संयम सज़ा नहीं है,
ये तो जीवन की सज़ावट के लिये होते हैं ।
पुरूषार्थी का सोच – मैं चलूंगा, लोग मिलते चले जायेगें ।
आलसी का सोच – जब लोग चलेंगे, तब मैं चलूंगा ।
जो अच्छा है वह अपना, बाकी सब सपना है ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
जिसकी आने की तिथि निश्चित नहीं,
ऐसे मेहमान के आने पर आप घबराते हैं, दु:खी होते हैं ? या उनका स्वागत करते हैं ?
मृत्यु भी तो अतिथि है, उसका स्वागत क्यों नहीं करते ??
चिंतन
T – This is an
O – Opportunity to
D – Do
A – A work better than
Y – Yesterday
(Ms. Rishika – Guwahati)
If you can solve the problem, then what is the need of worrying ?
If you can not solve it, then what is the use of worrying ??
(Ms. Shuchi)
जो बातें/चीजें , बचपन/अज्ञानता में फालतु लगती थीं, बड़े होने/ज्ञान आने पर बहुत important लगने लगती हैं और जो पहले important लगती थीं, वो फालतु लगने लगती हैं ।
चिंतन
जंगल (संसार) में सपेरे बीन लिये बैठे हैं,
पर हम और भी महान, दुरबीन लिये बैठे हैं ।
(श्री मेहुल)
Living is very simple,
Laughing too is simple,
Winning is also simple,
But being “simple” is very difficult.
(Mr. Sanjay)
देव, शास्त्र, गुरु को जिन्होंने अपना मालिक बना लिया है, उनके जीवन में कर्म चोर, मालिक को देखकर भाग जाते हैं ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
हमारे श्रद्धेय श्री आर. बी. गर्ग (इस साईट के प्रशंसक तथा नियमित item और comments देने वाले )
19 सितम्बर को इस संसार को छोड़ कर चले गये ।
अस्पताल में बीमारी और घोर पीड़ा में भी जब ड़ाक्टर या अन्य कोई मिलने आता था, तो उनका एक ही response होता था – ” नमस्ते ! मेरी तबियत first class है ”
उनके अनेक गुणों में से यह एक गुण था, जिससे हम सीख ले सकते हैं ।
A stone is broken by the last stroke of hammer.
It does not mean that the first stroke is useless !…
Success is a result of continuous efforts !!
(Mr. Dharmendra)
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