Majority को जो मान्य होता है वह नियम बन जाता है,
नियम Majority के लिये होते हैं ।

चिंतन

धर्म के बारे में सोचा नहीं जाता,
बस अधर्म कम करते चले जाओ,
धर्म स्वंय जीवन में आता जायेगा ।

अधर्म का अभाव ही धर्म है,
जैसे हिंसा का अभाव ही अहिंसा है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

हमारे आसपास की सब चेतन तथा अचेतन चीज़ों के बारे में सोच यह होना चाहिये कि इन सब के साथ हमारा कुछ समय का करार है, उसके बाद इन्हें हमसे जुदा होना ही पड़ेगा ।

बाई जी

साधु संगति की महिमा दूध पानी जैसी है,
पानी दूध के साथ मिलकर दूध के भाव ही बिकने लगता है ।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

(पर दूध में ज़्यादा पानी मिलाने पर, दूध को सब थू थू करने लगते हैं )

दान से हमारे खाते में पुण्य नहीं पहुँच पाता,
मात्र कुछ पाप धुल पाते हैं ।

क्योंकि पुरूष ढेरों पाप करते हैं, धन कमाने में,
स्त्रियाँ ढेरों पाप करतीं हैं, घर के काम काजों में ।

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