जिसकी आने की तिथि निश्चित नहीं,
ऐसे मेहमान के आने पर आप घबराते हैं, दु:खी होते हैं ? या उनका स्वागत करते हैं ?

मृत्यु भी तो अतिथि है, उसका स्वागत क्यों नहीं करते ??

चिंतन

जो बातें/चीजें , बचपन/अज्ञानता में फालतु लगती थीं, बड़े होने/ज्ञान आने पर बहुत important लगने लगती हैं और जो पहले important लगती थीं, वो फालतु लगने लगती हैं ।

चिंतन

देव, शास्त्र, गुरु को जिन्होंने अपना मालिक बना लिया है, उनके जीवन में कर्म चोर, मालिक को देखकर भाग जाते हैं ।

मुनि श्री सौरभसागर जी

हमारे श्रद्धेय श्री आर. बी. गर्ग (इस साईट के प्रशंसक तथा नियमित item और comments देने वाले )
19 सितम्बर को इस संसार को छोड़ कर चले गये ।
अस्पताल में बीमारी और घोर पीड़ा में भी जब ड़ाक्टर या अन्य कोई मिलने आता था, तो उनका एक ही response होता था  –  ” नमस्ते ! मेरी तबियत first class है ”
उनके अनेक गुणों में से यह एक गुण था, जिससे हम सीख ले सकते हैं ।

हम जिस तरह आज जीते हैं,
उसी तरह आगे के जीने के लिये भी हम तैयारी कर लेते हैं ।
(इस जन्म में तथा अगले जन्म में हम कैसे होंगे, इसका निश्चय हमारा ‘आज’ का life pattern करता है )

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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