• मान का उल्टा यानि कोमलता और विनयशीलता ।
  • मान के रूप – होने और ना होने, दोनों में मान आता है ।
    ( वैभव आदि के होने तथा सम्मान आदि ना होने में ) ।
  • मान स्वभाव नहीं, अज्ञान से आता है ।
  • कैसे बचें ?
    सोचें
    1. मुझे जो मिला है वह मेरे पूर्व के कर्मों से मिला है और जो नहीं मिला है, वो पुण्य की कमी से ।
    2. हम सब अच्छी बुरी अवस्थायों से गुज़रे हैं और गुज़रेंगे,
    जैसे इंदिरा गांधी बहुत प्रसिद्ध प्रधानमंत्री थीं, फिर उतरीं और पुन: बनीं ।
    3. धर्म की दृष्टि से देखें तो आत्मा ना छोटी है ना बड़ी ।
    4. हमारे पास जो भी है वो सब Temporary है ।
    5. दूसरों के गुणों पर दृष्टि रखें और उनकी प्रशंसा करें ।
    6. अपने अंदर कर्ता, स्वामित्व और भोगत्व का भाव ना आने दें ।
    7. अपने दोषों पर दृष्टि रखें ।
  • मार्दव धर्म का लाभ
    1. पुण्य मिलता है ।
    2. कर्म कटते हैं ।
    3. इस जन्म और अगले जन्मों में यश मिलता है ।
    4. आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है ( क्योंकि मार्दव आत्मा का स्वभाव है ) ।

    पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला  (पारस चैनल)

  • Burnt grass acts  as a manure,
    Burnt Desires make the progress sure,
    Burnt Coal gets rid of  blackness,
    Burnt  Ego leads a man to progress

    ( Ms. Rishika- Gauhati)

इस वर्ष यह पर्व 2 सितम्बर से 11 सितम्बर तक मनाया जायेगा ।
पर्यूषण का मतलब –  जो सब तरफ से पापों को नष्ट करे,
पर्व का मतलब       – अवसर या संधि ( Joint) – जो धर्म करने और ना करने वालों को मिलाने का अवसर दे ।

बरसात में व्यवसाय कम होता है, साधुजन एक स्थान पर रहने लगते हैं (चलने में घास, कीड़े-मकोड़े आदि की हिंसा से बचने के लिये) सो उनके सान्निध्य में धर्मध्यान ख़ूब होता है । इसलिये वर्षाकाल में पर्यूषण -पर्व अधिक उत्साह से मनाया जाता है ।

क्षमा, मार्दव, आर्जव और शौच                      – मन की पवित्रता के लिये ,
सत्य                                                       – वचन की पवित्रता के लिये ,
संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रम्हचर्य     – काय की पवित्रता के लिये हैं ।

आज का दिन उत्तम क्षमा का है ।
धर्म की शुरूआत क्षमा से ही होती है –
सब जीवों को मैं क्षमा करता हूँ, सब जीव मुझे क्षमा करें ।

शुभकामनायें कि हम सब यह पर्व पूरी क्षमता और उत्साह से मनायें ।

मंदिर का निर्माण कारीगर ऊपर चढ़कर ही करता है ।
चारित्र की सीढ़ी पर चढ़े बिना व्यक्तित्व (धर्म) का निर्माण सम्भव नहीं है ।

आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी

प्रवचन कान से नहीं, प्राण से/ध्यान से सुनना चाहिए ।
जैसे गाली कान से नहीं, प्राण से/ध्यान से सुनते हैं, तभी तो प्रतिक्रिया करते हैं,
प्रवचन का Reaction – मन की पवित्रता ।

एक अंधा भिखारी बोर्ड पर यह लिखकर कि ‘मैं अंधा हूँ, मुझे मदद करें’, भीख मांग रहा था । कुछ ही लोग पैसा दे रहे थे ।
एक व्यक्ति ने बोर्ड बदल दिया और उस पर लिखा –                                      
‘मौसम कितना सुहावना है, पर मैं देख नहीं सकता’ ।
ढेरों पैसे आने लगे ।

ठंड ज्यादा थी सो रज़ाई के ऊपर लोई भी ड़ाल दी गयी ।
सुबह उठा तो मोटी रज़ाई तो थी, पर पतली लोई हट गयी थी ।

अंत में ठोस धर्म ही रह जाता है, बाकी सब सहारे साथ छोड़ जाते हैं ।

चिंतन

दूज के चाँद का इतना महत्व क्यों है ?

क्योंकि उसमें सम्भावनायें (प्रगति की/पूर्ण चंद्र बनने की) सबसे ज्यादा होती हैं ।

पं श्री जवाहरलाल नेहरू ( श्रीमति सुनीति)

दृष्टि यदि सही हो तो संसार की कोई भी वस्तु खोने पर आप कुछ भी ‘खोते’ नहीं हैं, बल्कि ‘पाते’ हैं – शांति, आनंद, सुकून ।
क्योंकि परिग्रह, मोह/Attachment कम हुआ, मन ने उदारता पायी ।

श्रीमति निधि (चिंतन)

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