मंदिर का निर्माण कारीगर ऊपर चढ़कर ही करता है ।
चारित्र की सीढ़ी पर चढ़े बिना व्यक्तित्व (धर्म) का निर्माण सम्भव नहीं है ।

आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी

प्रवचन कान से नहीं, प्राण से/ध्यान से सुनना चाहिए ।
जैसे गाली कान से नहीं, प्राण से/ध्यान से सुनते हैं, तभी तो प्रतिक्रिया करते हैं,
प्रवचन का Reaction – मन की पवित्रता ।

एक अंधा भिखारी बोर्ड पर यह लिखकर कि ‘मैं अंधा हूँ, मुझे मदद करें’, भीख मांग रहा था । कुछ ही लोग पैसा दे रहे थे ।
एक व्यक्ति ने बोर्ड बदल दिया और उस पर लिखा –                                      
‘मौसम कितना सुहावना है, पर मैं देख नहीं सकता’ ।
ढेरों पैसे आने लगे ।

ठंड ज्यादा थी सो रज़ाई के ऊपर लोई भी ड़ाल दी गयी ।
सुबह उठा तो मोटी रज़ाई तो थी, पर पतली लोई हट गयी थी ।

अंत में ठोस धर्म ही रह जाता है, बाकी सब सहारे साथ छोड़ जाते हैं ।

चिंतन

दूज के चाँद का इतना महत्व क्यों है ?

क्योंकि उसमें सम्भावनायें (प्रगति की/पूर्ण चंद्र बनने की) सबसे ज्यादा होती हैं ।

पं श्री जवाहरलाल नेहरू ( श्रीमति सुनीति)

दृष्टि यदि सही हो तो संसार की कोई भी वस्तु खोने पर आप कुछ भी ‘खोते’ नहीं हैं, बल्कि ‘पाते’ हैं – शांति, आनंद, सुकून ।
क्योंकि परिग्रह, मोह/Attachment कम हुआ, मन ने उदारता पायी ।

श्रीमति निधि (चिंतन)

Archives

Archives
Recent Comments

April 8, 2022

February 2025
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
2425262728