दूज के चाँद का इतना महत्व क्यों है ?

क्योंकि उसमें सम्भावनायें (प्रगति की/पूर्ण चंद्र बनने की) सबसे ज्यादा होती हैं ।

पं श्री जवाहरलाल नेहरू ( श्रीमति सुनीति)

दृष्टि यदि सही हो तो संसार की कोई भी वस्तु खोने पर आप कुछ भी ‘खोते’ नहीं हैं, बल्कि ‘पाते’ हैं – शांति, आनंद, सुकून ।
क्योंकि परिग्रह, मोह/Attachment कम हुआ, मन ने उदारता पायी ।

श्रीमति निधि (चिंतन)

छोटी सी बुरी आदत, जैसे “पान खाना”, यह भी अपने और दूसरों के कपड़े, दीवारें, अपनी सेहत, सबको खराब करती है ।
तो बड़ी बड़ी बुरी आदतें ,कितना और कितनों का नुकसान करतीं होंगी ?

जैन धर्म के अनुसार इसके दो महत्व हैं ।

1. सांसारिक – स्त्री के बचपन में पिता संरक्षण देता है, युवावस्था में पति तथा वृद्धावस्था में बच्चे संरक्षण देते हैं ।
लेकिन भाई अपनी बहन को तीनों अवस्थाओं में संरक्षण देता है ।

2. धर्म के क्षेत्र में यह श्रमण (साधू) और श्रावकों (गृहस्थों) के प्रेम तथा संरक्षण का त्यौहार है ।श्रावक अपनी सांसारिक उपलब्धियों से साधु तथा धर्म की रक्षा करता है,वहीं साधु धर्म के द्वारा श्रावकों की रक्षा करते हैं।

मुनि श्री सौरभसागर जी

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