The single finger which wipes out tears during our failure is much better than the 10 fingers which comes together to clap for our victory.
(Mr. Asheesh Mani Jain)
जलते कोयले को शीतलता देने के उद्देश्य से पानी ड़ालना हिंसा है ।
वस्तु के स्वभाव के विपरीत व्यवहार न करें ।
चिंतन
चंदन की खुशबू कुछ दूर तक ही जाती है,
चारित्र की खुशबू देवलोक तक जाती है ।
आचार्य श्री महाश्रमण जी
If you can’t fly,
Run
If you can’t run
Walk
If you can’t walk
Crawl
But keep moving
towards your Goal.
That’s true Efforts & Life
(Mr. Mehul)
यदि महाभारत में युधिष्ठर झूठ नहीं बोलते तो शायद महाभारत समाप्त नहीं होता ।
गृहस्थों के लिये अच्छे उद्देश्य से झूठ बोलना युक्त्ति संगत है ।
चिंतन
हम सब पाँच गेंदों को हवा में उछाल उछाल कर खेल रहे हैं ।
इन गेंदों के नाम हैं – व्यवसाय, परिवार, स्वास्थ, मित्र और नैतिकता ।
व्यवसाय की गेंद तो रबड़ की है, गिर भी गयी तो फिर उछल कर हाथ में आ जायेगी ।
पर बाकी चारौं गेंदें, काँच की हैं – एक बार हाथ से छूटीं तो टूट जायेगीं, फिर जुड़ नहीं पायेंगी ।
व्यवसाय/नौकरी के लिये बाकी चारौं को टूटने मत देना ।
संतुष्टि प्रकाश है,
सफलता छाया है ।
संतुष्टि पा ली तो सफलता/छाया पीछे पीछे आयेगी ही ।
मुनि श्री अनुभवसागर जी
We get comfort from those who agree with us, but we get growth from only those who don’t agree with us. – Bill Gates
(Mr. Pranjal)
पृथ्वी का वह भाग अंधकारमय हो जाता है जिसका सूर्य की ओर मुँह नहीं होता है ।
- Goal का स्पष्ट निर्धारण ।
- गति बनाए रखना ।
- गुरू/सत्संगियों से guidance लेना ।
- अनुकम्पा के भाव रखना ।
आचार्य श्री महाश्रमण जी
Why blame anyone in our life.
When good people give happiness,
Bad people give experience,
Worst people give a lesson & best people , key of success.
वैभव और सफलता, मेहनत और ज्ञान से ही नहीं मिलती,
वरना मज़दूर और पंड़ितों के पास होतीं ।
इनके मिलने का मुख्य कारण है – पुण्य
मुनि श्री तरुणसागर जी
( ये अलग बात है कि आज का पुण्य, पिछ्ले पुरूषार्थ का ही फल है )
बुद्धू राजकुमारों को पढ़ाने के लिये पंचतंत्र की कहानियों की रचना की गयी थी ।
हमको पढ़ाने के लिये महाभारत, रामायण आदि प्रथमानुयोग के ग्रंथ लिखे गए।
क्योंकि हम भी राजकुमारों जैसे बुद्धू ही हैं, जानते हुये भी कि संसार दु:ख का कारण है, उसे बढ़ाते ही जाते हैं ।
चिंतन
जानवरों की सामर्थ्य मुँह से भोजन करने की है,
और मनुष्य की सामर्थ्य हाथों से ।
मनुष्य होकर भी यदि कोई सीधा मुँह से ही भोजन करे तो क्या यह उचित होगा ?
श्री लालमणी भाई
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