वैभव और सफलता, मेहनत और ज्ञान से ही नहीं मिलती,
वरना मज़दूर और पंड़ितों के पास होतीं ।
इनके मिलने का मुख्य कारण है – पुण्य

मुनि श्री तरुणसागर जी

( ये अलग बात है कि आज का पुण्य, पिछ्ले पुरूषार्थ का ही फल है )

बुद्धू राजकुमारों को पढ़ाने के लिये पंचतंत्र की कहानियों की रचना की गयी थी ।
हमको पढ़ाने के लिये महाभारत, रामायण आदि प्रथमानुयोग के ग्रंथ लिखे गए।
क्योंकि हम भी राजकुमारों जैसे बुद्धू ही हैं, जानते हुये भी कि संसार दु:ख का कारण है, उसे बढ़ाते ही जाते हैं ।

चिंतन

जानवरों की सामर्थ्य मुँह से भोजन करने की है,
और मनुष्य की सामर्थ्य हाथों से ।
मनुष्य होकर भी यदि कोई सीधा मुँह से ही भोजन करे तो क्या यह उचित होगा ?

श्री लालमणी भाई

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