एक चींटी बचाने का पुण्य सोने के पहाड़ को दान देने से भी ज्यादा होता है।
आर्यिका श्री विज्ञानमती माता जी
कर्म और धर्म कभी विपरीत नहीं होते।
जैसे किये जाते हैं वैसे ही फलित होते हैं।
मुनि श्री अजितसागर जी
(इनके एक से स्वभाव हैं, इसलिये कर्म धर्ममय होने चाहिये)
चिंतन
आँखें आँखों से ना मिलें, तो भीतरी आँखें खुलती हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
“दया”का उल्टा “याद”
किसकी याद ?
स्वयं की।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
दया शुरु करनी चाहिये स्वयं/ अपने घर से।
मुनि श्री अजितसागर जी
आग पर तरल पदार्थ डालने से आग बुझ जाती है।
पर इच्छा ऐसी आग है उसमें घी जैसा बहुमूल्य तरल भी (इच्छापूर्ति के लिये) डाला जाय तो इच्छा रूपी अग्नि और-और भड़कती है।
चिंतन
यदि आप बार-बार भूतकाल में जाते हैं तो आप वर्तमान से ही तो चुरा रहे हो/ वर्तमान बचेगा ही नहीं।
कानन विहारी
घर साफ़ रखने के लिये पहले गंदगी लाने वाली खिड़कियाँ बंद, तब झाड़ू।
बाधक कारणों को पहले रोकें फिर साध्य पर ध्यान।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
जिसको पाषाण में भगवान के दर्शन होते हैं, एक दिन उसे साक्षात् भगवान के दर्शन हो जाते हैं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Ritual = भगवान को मानना/ धार्मिक क्रियायें
Spiritual = भगवान की मानना/ धर्मात्मा
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
तुम अगर चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे,
बहुत दूर निकल सकते थे।
तुम ठहर गये, लाचार सरोवर की तरह;
तुम यदि नदिया बनते तो कभी समुद्र भी बन सकते थे।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
पहले राग होता है फिर उसमें विकल्प होते हैं तब वह मोह का रूप ग्रहण कर लेता है।
क्षुल्लक श्री सहजानंद जी
बेहतर, छिनने पर विश्वास रखें;
(कि) बेहतरीन मिलने वाला है।
जिज्ञासा….पैसे छिन जाने पर क्या बेहतरीन मिलेगा ?… रविकांत
पूर्व में आपने किसी के पैसे छीने होंगे । कर्जा चुक जाना बेहतरीन हुआ न !
स्वभाव – देखना, जानना।
विभाव – बिगड़ना।
इसलिए कहा – देखो, जानो, बिगड़ो मत।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
अंडे देने वाले जीवों के कान बाहर नहीं होते जैसे कछुआ, मगरादि, बच्चे देने वालों के बाहर जैसे गाय, घोड़ादि।
अनीता जी – शिवपुरी
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