जो दूसरों को बड़ा मानते हैं और अपने को छोटा मानकर हीन समझते हैं,
वे उतने ही दोषी हैं, जितने वे लोग- जो दूसरों को छोटा मानकर हीन समझते हैं और अपने को बड़ा मानते हैं।
तुम्हारा जीवन एक उपहार है और तुम इस उपहार के आवरण को खोलने के लिए आए हो।
तुम्हारे वातावरण, परिस्थितयां और शरीर आवरण के कागज हैं।
प्रायः अनावरण करते समय हम कागजों को फाड़ देते हैं,
कभी-कभी हम इतनी जल्दी में होते हैं कि हम उपहार (आत्मा) को भी नष्ट कर देते हैं।
धैर्य और सहनशीलता के साथ उपहारों को खोलो और आवरण को बचाकर रखो।
(धर्मेंद्र)
जो अपने ज्ञान को बाँटते नहीं,
वे ऐसे फूल हैं जो खिलते तो हैं पर सुगन्ध नहीं फैलाते।
(धर्मेंद्र)
बरसात में सब चिड़ियाँ अपने घोंसले में छिप जाती हैं,
चीलें बादलों के ऊपर उड़ने लगती हैं।
Problem same है, Attitude अलग अलग ।
(श्री मेहुल )
It is a mistake to look too far ahead.
Only one link in the chain of destiny can be handled at a time.
Mr. Winston Churchill ( Nobel Prize-Literature-1953)
Wait before you hate.
( Shreya)
सोना जलता नहीं, अशुद्धि ही जलती है,
पर अशुद्धि के सम्पर्क में आकर सोने को भी तपना पड़ता है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
गुरू के पास पहली बार एक विदेशी पहुँचे जिनको अध्यात्म में बहुत रुचि थी, गुरू से बहुत प्रभावित भी हुए ।
थोड़ी देर में गुरू के बहुत सारे शिष्य आपस में बुरी तरह झगड़ने लगे।
विदेशी बहुत दुखी हुए और वापिस जाने का निर्णय ले लिया।
गुरू – किसी का बाह्य रूप देखकर उसके बारे में कभी विचारधारा मत बना लेना।
आज आप उससे आगे हैं, पता नहीं कल आप यहीं खड़े रहें और वो आपसे बहुत आगे निकल जाए या आप कल को उससे बहुत नीचे चले जाएँ ।
(इस सूत्र को मानने से, आज वे शिष्य ’’हरे राम हरे कृष्ण’’ सम्प्रदाय के प्रधान हैं)
श्री आर.एन.सिंह
‘३६’ की आयु में अपने और पराऐ यदि उल्टे लगें तो आपत्तिजनक नहीं है ।
पर ‘६६’ के होने पर तो सब एक से लगने चाहिए ।
( ६६ वीं वर्ष गाँठ पर )
चिंतन
तुमने गाली क्यों दी ?
उसने पहले मुझे गाली दी, इसलिये मैंने उसे दी।
जिनकी पाचन शक्ति कमज़ोर होती है वे अपशब्दों का प्रयोग करते हैं ।
क्या दूसरे को उल्टी करते हुये देखकर आप भी उल्टी करोगे?
अपनी पाचन शक्ति को बढ़ाना होगा।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
Name – भविष्य में होता है (प्रायः मरने के बाद),
Fame – वर्तमान में होता है।
(Name का क्या महत्व ? तब तक तो आप अगला जन्म ले चुके होते हैं ।
वर्तमान की Fame में भी चापलूस लोग ही वाह वाह करते हैं बाकि सब तो ईर्षा ही करेंगे, तो इसका भी कुछ फ़ायदा नहीं है )
आज के दिन ही भगवान महावीर का जन्म हुआ था ।
जब भगवान छोटे थे, उनके साथी उनसे मिलने आए तो महावीर की माँ से पूछा,
उन्होंने बताया – महावीर ऊपर हैं ।
वे ढ़ूँढ़ते – ढ़ूँढ़ते महल की छत पर पहुँच गए,
वहाँ उनके पिता मिले, उनसे भी पूछा तो जबाब मिला – महावीर नीचे हैं ।
साथी नीचे आने लगे तो महावीर बीच की मंज़िल पर मिल गए ।
साथियों ने पूछा – माँ कहतीं थी – तुम ऊपर हो, पिता ने कहा नीचे, सच किसे मानें ?
महावीर – यही तो अनेकांत है । एक ही स्थिति या वस्तु को अलग अलग व्यक्ति अलग अलग दृष्टि से देखते हैं । वे दृष्टिकोण एक दूसरे के विपरीत होते हुए भी, एक ही समय पर दौनों सत्य भी हो सकते हैं ।
इस अनेकांत के सिद्धांत को परिवार, समाज या देश कहीं पर भी अपनाकर आपसी झगड़ों को समाप्त किया जा सकता है ।
प्रश्न :- क्या हमारे धर्मध्यान/पुण्यकर्म हमारे बच्चों को लगेंगे ?
श्रीमति शर्मा
उत्तर :- यदि हमारे बच्चों के खाते में पुण्यकर्म नहीं हैं, तो हमारे धर्मध्यान का कोई असर नहीं होगा।
- आपको असाता क्यों हुई?
क्योंकि आपके पाप का उदय आ गया था। आप धर्मध्यान करेंगे तो वह शान्त होगी या नहीं ?
- व्यसनी माँ-बाप का असर बच्चों के जीवन में अशान्ति लाता है या नहीं?
फिर आपका धर्मध्यान/पुण्य कर्म उनके जीवन में शान्ति क्यों नहीं लाएगा ?
- एक नाव में बहुत लोग बैठे हों, उनमें एक आदमी के उपद्रव की वजह से नाव डूब गयी तो सब मरेंगे या नहीं?
गलती एक ने की थी तो सब क्यों मरे ?
बाकी लोगों की गलती यह थी कि उन्होंने विवेक नहीं लगाया, गलत आदमी की संगति की, इसलिये वो लोग भी डूबे, जिन्होंने उपद्रव नहीं किया था।
यह सिद्ध हुआ कि, हमारे अच्छे/बुरे कार्यों का फल बच्चों पर भी होता है ।
चिंतन
रसोई -जहाँ रस बरसे।
Kitchen – जहाँ किच किच रहे।
चौका – जहाँ शास्त्र की चौकी बनी रहे।
मुनि श्री तरूण सागर जी
फ़र्क हिन्दी और अँग्रेज़ी का नहीं बल्कि अँग्रेज़ियत का है/अपने संस्कारों को भूल कर पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होने का है ।
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