आज के दिन ही भगवान महावीर का जन्म हुआ था ।
जब भगवान छोटे थे, उनके साथी उनसे मिलने आए तो महावीर की माँ से पूछा,
उन्होंने बताया – महावीर ऊपर हैं ।
वे ढ़ूँढ़ते – ढ़ूँढ़ते महल की छत पर पहुँच गए,
वहाँ उनके पिता मिले, उनसे भी पूछा  तो जबाब मिला – महावीर नीचे हैं ।
साथी नीचे आने लगे तो महावीर बीच की मंज़िल पर मिल गए  ।
साथियों ने पूछा  – माँ कहतीं थी – तुम ऊपर हो, पिता ने कहा नीचे, सच किसे मानें ?

महावीर – यही तो अनेकांत है । एक ही स्थिति या वस्तु को अलग अलग व्यक्ति अलग अलग दृष्टि से देखते हैं । वे दृष्टिकोण एक दूसरे के विपरीत होते हुए भी, एक ही समय पर दौनों सत्य भी हो सकते हैं ।

इस अनेकांत के सिद्धांत को परिवार, समाज या देश कहीं पर भी अपनाकर आपसी झगड़ों को समाप्त किया जा सकता है ।

प्रश्न :- क्या हमारे धर्मध्यान/पुण्यकर्म हमारे बच्चों को लगेंगे ?

श्रीमति शर्मा

उत्तर :- यदि हमारे बच्चों के खाते में पुण्यकर्म नहीं हैं, तो हमारे धर्मध्यान का कोई असर नहीं होगा।

  • आपको असाता क्यों हुई?
    क्योंकि आपके पाप का उदय आ गया था। आप धर्मध्यान करेंगे तो वह शान्त होगी या नहीं ?
  • व्यसनी माँ-बाप का असर बच्चों के जीवन में अशान्ति लाता है या नहीं?
    फिर आपका धर्मध्यान/पुण्य कर्म उनके जीवन में शान्ति क्यों नहीं लाएगा ?
  • एक नाव में बहुत लोग बैठे हों, उनमें एक आदमी के उपद्रव की वजह से  नाव डूब गयी तो सब मरेंगे या नहीं?
    गलती एक ने की थी तो सब क्यों मरे ?
    बाकी लोगों की गलती यह थी कि उन्होंने विवेक नहीं लगाया, गलत आदमी की संगति की, इसलिये वो लोग भी डूबे, जिन्होंने उपद्रव नहीं किया था।

यह सिद्ध हुआ कि, हमारे अच्छे/बुरे कार्यों का फल बच्चों पर भी होता है

चिंतन

रसोई   -जहाँ रस बरसे।
Kitchen – जहाँ किच किच रहे।
चौका   – जहाँ शास्त्र की चौकी बनी रहे।

मुनि श्री तरूण सागर जी

फ़र्क हिन्दी और अँग्रेज़ी का नहीं बल्कि अँग्रेज़ियत का है/अपने संस्कारों को भूल कर पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित होने का है

चींटियाँ भी दूसरों पर उपकार करती हैं।
उनको बचाने में हम पाप और हिंसा से बच जाते हैं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

हम सब 100 km/h या उससे अधिक की speed से अपने जीवन की गाड़ी दौड़ा रहे हैं।
ना तो side के सुंदर दृश्य देख पा रहे हैं, ना ही दौड़ने का आनंद।

जीवन में दौड़ तो जरूरी है पर चम्मच में नींबू लेकर दौड़ने वाली race |
नींबू हैं – हमारे परिवाजन, हमारी सेहत, moral आदि।
यदि नींबू गिर गये तो race बेकार।

नींबूओं का balance सम्भालते हुए जितना तेज दौड़ सकते हैं उतना ही दौड़ें ।

(श्री गौरव)

एक चित्रकार ने सड़क के किनारे चित्र रख दिया और नीचे लिखा –
इसमें यदि कोई त्रुटि दिखे तो उसे बताऐं ।
शाम को चित्र पर इतनी बड़ी  list बन गयी कि चित्र ही नहीं दिख रहा था।
अगले दिन उसने फिर चित्र रखा और नीचे लिखा त्रुटियों को सुधार दें।
शाम तक एक भी correction नहीं हुआ।

हम सबकी गलतियाँ तो बताते हैं, उन्हें सुधारना नहीं चाहते।

एक चित्रकार था दूसरा विचित्रकार( विचित्र चित्रकार), दोनौं में competition हुआ – एक हाल की एक दीवार चित्रकार को दी गयी और दूसरी विचित्रकार को ।  एक माह का समय दे दिया। बीच में पर्दा ड़ाल दिया गया।

एक माह बाद देखा कि चित्रकार ने संसार का बड़ा सुंदर चित्र बनाया है, निरीक्षकों ने बहुत तारीफ़ की ।  विचित्रकार की दीवार पर कुछ नहीं था, चमकती हुई साफ दीवार थी, एक माह तक उसने दीवार को खूब चमकाया था।

चित्र कहाँ है ?

पर्दा हटाओ ।

उस चमकती दीवार में सामने की दीवार का, संसार का चित्र दिख रहा था और उसमें चित्रकार, विचित्रकार तथा निरीक्षक भी दिखाई दे रहे थे।
संसार का चित्र और सजीव दिखने लगा था।

यदि हम अपनी आत्मा को ऐसे ही साफ करलें, चमका लें तो उसमें सारा संसार दिखने लगेगा, उसमें हमारा रूप भी दिखने लगेगा, केवल ज्ञान हो जाएगा ।

मुनि श्री क्षमासागर जी

सूर्य का प्रकाश सबसे अच्छा disinfectant है ।
क्योंकि इसमें चीजें स्पष्ट झलकती हैं ।

भ्रष्टाचार खत्म करने का भी सबसे अच्छा उपाय पारदर्शिता ही है ।
जिसके लिये श्री अण्णा हज़ारे आदि आमरण अनशन पर बैठे हैं ।
हम सब भी उनका सहयोग करें ।

श्री के. के. जैसवाल

एक सेठ के घर तोता पला था, वह उसे पिंजड़े में नहीं रखता था ।
एक दिन सेठ ने अपने घर के आसपास एक बिल्ली देखी ।
सेठ ने तोते को बताया कि –  बिल्ली आए, तो उड़ जाना ।
वह रोजाना उसे याद दिलाता था, तोता भी दिन भर बोलता रहता था – बिल्ली आए तो उड़ जाना – बिल्ली आए तो उड़ जाना
एक दिन सचमुच बिल्ली आ गयी ।
तोता बोलने लगा – बिल्ली आए तो उड़ जाना – बिल्ली आए तो उड़ जाना,  पर उड़ा नहीं,
बिल्ली तोते को खा गयी ।

हम भी अच्छी बातें बोलते हैं, पर समय आने पर क्रियान्वित नहीं करते हैं

  • तकिया : अच्छा वह माना जाता है जो मुलायम हो और मालिक के अनुसार अपना अस्तित्व बदल दे/अपना आकार बदल ले।
  • मनुष्य : अच्छे बुरे का ध्यान रखकर ही अपने को बदले, तकिये की तरह नहीं।
    ज़रूरत पड़ने पर कभी मुलायम, कभी कठोर बने।
  • आत्मा : जब तक संसार में है, शरीर के अनुसार अपना आकार बदलती है,
    मुक्त होने के बाद आकार बदलना बंद हो जाता है।

चिंतन

सरसरी निगाह से देखने का मतलब रूचि नहीं, सबकुछ गौण।
यदि किसी प्रिय वस्तु पर निगाह टिक गयी तो विकार आए बिना रहेगा नहीं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Q.  –    किसी के लिये बहुत ज्यादा करो और वो प्रतिक्रिया अच्छी न दे तो मन का दुखी होना स्वाभाविक है ना ?

श्रीमति शर्मा

A.  –   संसार के न्यायालयों में भी एक गुनाह की दो सजायें नहीं मिल सकतीं ।
फिर कर्म सिद्धान्त के न्यायालय में एक पुण्य-कर्म के दो इनाम कैसे मिल सकते हैं ?
पहला इनाम-पुण्य का फल तो आपके खाते में जमा उसी समय हो गया जब आप ने किसी के लिये कुछ किया ।
फिर आप सामने वाले से अच्छी प्रतिक्रिया के रूप में दूसरे इनाम की चाहना क्यों रखते हैं ?
वैसे भी सामान्य से अधिक यदि आप किसी के लिये कुछ करते हैं तो क्या आप कर्म-सिद्धान्त में दखलंदाजी नहीं कर रहे हैं ?
यह अधिकार आपको किसने दिया ?

सलाह –  किसी पर अति उपकार मत करो,
वरना बदले में आपके अंदर चाहना की भावना आना स्वाभाविक है ।

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