Dairy maintain करने के बहुत फायदे हैं,

पर एक बड़ा नुकसान भी है, यदि कोई item ड़ायरी में नहीं लिखा तो उसके याद आने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।

इसीलिये बाह्य साधन शुरू में तो अच्छे हैं,

पर बाद में उन पर आश्रित हो जाने की आदत पड़ जाती है।

चिंतन

एक कंजूस सेठ थे।
धर्म सभा में आखरी पंक्ति में बैठते थे।
कोई उनकी ओर ध्यान भी नहीं देता था।
एक दिन अचानक उन्होंने भारी दान की घोषणा कर दी।
सब लोगों ने उन्हें आगे की पंक्ति में ले जाकर बैठाया, आदर सत्कार किया।

उन्होंने कहा- यह सत्कार मेरा नहीं, पैसे का हो रहा है।
गुरू – पैसा तो तुम्हारे पास तब भी था, जब तुम पीछे बैठते थे और तुम्हें कोई पूछता नहीं था।
आज तुम्हारा आदर इसलिये हो रहा है क्योंकि तुमने पैसे को छोड़ा है , दान किया है।

गुरू श्री क्षमासागर जी

ज्ञानी सोचता है कि उपसर्ग से कर्म जल्दी कट जायेंगे,
उपसर्ग/प्रश्न पत्र देने वाला कोई भी हो, परीक्षा तो आपको ही देनी होगी।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

एक दिन युधिष्ठर जब राज्यसभा विसर्जित कर रहे थे, तब एक याचक आ गया ।
युधिष्ठर – कल आना, आज तो राज्यसभा विसर्जित हो रही है ।
भीम ने विजय-घोष के नगाडे बजवा दिये ।
युधिष्ठर ने आश्चर्य से पूछा- ये नगाडे क्यों बजाये गये ?
भीम – आपने मृत्यु को जीत लिया है इसलिये ये विजय-घोष हो रहा है । कल तक आप जिंदा रहेंगे, यह विश्वास, मृत्यु पर जीत नहीं तो क्या है ?
युधिष्ठर ने तुरन्त याचक को बुलाकर उसे मुँह मांगा दान दे दिया ।

जो दूसरों को बड़ा मानते हैं और अपने को छोटा मानकर हीन समझते हैं,
वे उतने ही दोषी हैं, जितने वे लोग-                                                                                                           जो दूसरों को छोटा मानकर हीन समझते हैं और अपने को बड़ा मानते हैं।

तुम्हारा जीवन एक उपहार है और तुम इस उपहार के आवरण को खोलने के लिए आए हो।
तुम्हारे वातावरण, परिस्थितयां और शरीर आवरण के कागज हैं।

प्रायः अनावरण करते समय हम कागजों को फाड़ देते हैं,
कभी-कभी हम इतनी जल्दी में होते हैं कि हम उपहार (आत्मा) को भी नष्ट कर देते हैं।

धैर्य और सहनशीलता के साथ उपहारों को खोलो और आवरण को बचाकर रखो।

(धर्मेंद्र)

सोना जलता नहीं, अशुद्धि ही जलती है,
पर अशुद्धि के सम्पर्क में आकर सोने को भी तपना पड़ता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

गुरू के पास पहली बार एक विदेशी पहुँचे जिनको अध्यात्म में बहुत रुचि थी, गुरू से बहुत प्रभावित भी हुए ।
थोड़ी देर में गुरू के बहुत सारे शिष्य आपस में बुरी तरह झगड़ने लगे।
विदेशी बहुत दुखी हुए और वापिस जाने का निर्णय ले लिया।

गुरू – किसी का बाह्य रूप देखकर उसके बारे में कभी विचारधारा मत बना लेना।
आज आप उससे आगे हैं, पता नहीं कल आप यहीं खड़े रहें और वो आपसे बहुत आगे निकल जाए या आप कल को उससे बहुत नीचे चले जाएँ ।
(इस सूत्र को मानने से, आज वे शिष्य ’’हरे राम हरे कृष्ण’’ सम्प्रदाय के प्रधान हैं)

श्री आर.एन.सिंह

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