यदि चाँद तारों की सुन्दरता का आनंद लेना चाहते हो,
तो अंधकार को झेलना ही होगा ।
(श्रीमति शर्मा)
अनु = कम,
जो राग को कम करने में सहयोग करे वह अनुराग ।
श्री लालमणी भाई
प्रकृति की व्यवस्था है कि आँखों से आंसू बहाकर दृष्टि को निर्मल करती है, गंदगी को दूर करती है ।
प्रो. रेणु
Let our advance worrying become advance thinking and planning.
Mr. Winston Churchill
अनु = कम,
जो भवों को कम करने में सहयोग करे वह अनुभव ।
श्री लालमणी भाई
तू कुछ चाहता है, मैं कुछ चाहता हूँ,
होता वह है, जो मैं चाहता हूँ,
तू वह करने लग जा जो मैं चाहता हूँ,
फिर वह होगा, जो तू चाहता है ।
( श्री अखिलेश)
हम कितने होशियार हैं – हमने ज्ञान को पुस्तक में, काल को घड़ी में और अमूर्तिक को मूर्तिक में बदल लिया है ।
हम मूर्तिक के आदी हैं, इसलिये सबको मूर्ति के रूप में ही देखना चाहते हैं ।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
विपत्ति में ज्ञान चिल्लाता है, आस्था झेलती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
चाकू, टेलिविजन, मोबाईल बुरे नहीं हैं, इनका गलत उपयोग बुरा है ।
चिंतन
मंदिर का निर्माण कारीगर ऊपर चढ़कर ही करता है ।
चारित्र की सीढ़ी पर चढ़े बिना, व्यक्तित्व (धर्म) का निर्माण संभव नहीं है ।
आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी
पाप की सामग्री छोड़ना – पुण्य है ।
पुण्य की सामग्री छोड़ना – वैराग्य ।
धर्म तो सत्य है ही, फिर धर्म के आगे ‘सत्य’ लगाने की क्या ज़रूरत है ?
क्योंकि आज असत्य को भी धर्म कहने लगे हैं ।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
दूसरे का ‘स्वाभिमान’ भी ‘अभिमान’ लगता है और अपना ‘अभिमान’ भी ‘स्वाभिमान’ ।
इसलिये सभी प्रकार के ‘मान’ से सतर्क रहना चाहिये ।
प्रो. श्री आर. सी. जैन
लोभी से लोभी व्यापारी भी अपनी दुकान में “शुभ-लाभ” लिखता है ।
पहले ‘शुभ’ यानि धर्म,
फिर ‘लाभ’ यानि संसार ।
(श्री गौरव)
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